BILASPUR. छत्तीसगढ़ उच्च न्यायलय ने हाल ही में कोर्ट में आए पति–पत्नी के एक मामले को लेकर अहम टिप्पणी की है। बेमेतरा के फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की बेंच ने पत्नी की याचिका पर यह फैसला किया है। इसमें हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा लगाए गए तलाक को नामंजूर कर दिया है। इस फैसले में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी को बिना उसकी इच्छा-शर्तों के मुताबिक बंधुवा मजदूर की तरह रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। इसके साथ ही पति न ही उसे अपनी शर्तों के अनुसार कहीं भी रहने के लिए दबाव बना सकता है।
दरअसल, यह पूरा मामला बेमेतरा के पास के एक गांव का है। 8 मई 2008 को युवती की शादी कबीरधाम जिले के गांव में रहने वाले युवक से हुई। जैसा की हर समाज की परंपरा में होता है वैसे ही वह शादी के कुछ दिनों बाद मायके चली गई। इसके बाद गौना के बाद वह फिर से ससुराल लौट आई। शादी के करीब 6 महीने बाद पति–पत्नी में विवाद शुरू हो गया। इस पर पति का आरोप था कि उसकी पत्नी ससुराल में नहीं रहना चाहती। युवती ने रायपुर के किसी कॉलेज में बीएड में एडमिशन लिया था। परीक्षा के बाद जब पति उसे लेने गया तब उसने पति के साथ वापस ससुराल जाने से साफ इंकार कर दिया। युवती का कहना था कि वह मायके में ही रहना चाहती है। पति ने बार बार उससे साथ चलने को कहा इस पर उसने महिला थाना में जाकर पति के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दी।
पति ने पूरा मामला बेमेतरा फैमिली कोर्ट लेजा कर प्रस्तुत किया। पति में आवेदन में यह बताया कि उसकी पत्नी साथ रहने को तैयार नहीं है और ससुराल चलने की बात कहने पर पुलिस में शिकायत दर्ज करवा चुकी है। फैमिली कोर्ट में पति के इस आवेदन को मंजूर करते हुए तलाक की डिक्री मंजूर की है थी जिसपर महिला ने हाई कोर्ट में चुनौती दी।
पत्नी की यह मांग स्वाभाविक– हाई कोर्ट
इस मामले को लेकर हाई कोर्ट ने पत्नी का पक्ष लेते हुए बड़ा फैसला किया। कोर्ट में कहा गया कि पत्नी की यह मांग स्वाभाविक और जायज है। कोई भी व्यक्ति अपनी शर्तों के अनुसार पत्नी को बंधुवा मजूदर की तरह किसी जगह रहने को मजबूर नहीं कर सकता। पत्नी की यह मांग क्रूरता की श्रेणी में हरगिज नहीं आती। शादी के रिश्ते में पति–पत्नी का एक दूसरे के प्रति सम्मान जरूरी है।