NEW DELHI. लिव इन रिलेशनशिप को लेकर गाइडलाइन बनाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि क्या आप इन लोगों की सुरक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं या लोगों को लिव इन रिलेशनशिप में नहीं रहने देना चाहते हैं? इस मामले में केंद्र सरकार का क्या रोल है। ऐसी याचिकाओं पर जुर्माना लगाना चाहिए।
दरअसल, लिव इन रिलेशनशिप में हो रही हत्याओं का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है और इसमें लिव इन में रहने वाले जोड़ों का पंजीकरण अनिवार्य करने की मांग की गई है। सरकार को कड़े नियम और गाइडलाइन बनाने के आदेश देने की मांग की गई है।
धोखे, झांसे और हिंसक अपराध रोकने के लिए दायर की थी याचिका
नियमों पर अमल सुनिश्चित करने का मेकेनिज्म विकसित करने की भी प्रार्थना की गई है। लिव इन रिलेशनशिप में लगातार बढ़ते धोखे, झांसे और हिंसक अपराधों को रोकने के लिए ये याचिका दाखिल की गई है। याचिका में कहा गया है कि श्रद्धा, कभी निक्की यादव और कभी कोई, लेकिन अब कोई और नहीं होना चाहिए।
शादी की तरह ही लिव-इन का पंजीकरण करने की मांग
लिव इन रिलेशनशिप के दौरान आए दिन होने वाली हत्या की घटनाओं पर रोक लगाने पंजीकरण की अनिवार्यता के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। इस जनहित याचिका में विवाह की तरह ही लिव इन रिलेशन में रह रहे जोड़ों का पंजीकरण अनिवार्य करने की गुहार लगाई गई है।
याचिका में कहा गया है कि महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट अपने पिछले आदेशों को और ज्यादा विस्तार देते हुए पीड़ित या असंतुष्ट पक्षकार के तौर पर महिलाओं की स्थिति को स्पष्ट कर दे, ताकि वो राहत के लिए कानून में मौजूद विकल्प आजमा सकें।
याचिका में कहा गया है कि लिव इन संबंधों के रजिस्ट्रेशन यानी निबंधन के प्रावधान के अभाव में संविधान के अनुच्छेद 21 में वर्णित महिलाओं के गरिमापूर्ण जीवन जीने और निजता के अधिकार की सुरक्षा की गारंटी का हनन होता है। याचिका में बताया गया है कि लिव इन रिलेशनशिप में लगातार बढ़ते धोखे, झांसे और हिंसक अपराधों को रोकने के लिए केंद्र सरकार को इस संबंध में कानून और गाइडलाइन तैयार करने के निर्देश देने की मांग की गई है।
कोर्ट पहले दे चुका है यह फैसला
सुप्रीम कोर्ट के धन्नू लाल बनाम गणेशराम और बदरी प्रसाद, इंद्रा शर्मा सहित कई मामलों में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि कोर्ट उसमें भी मान चुका है कि लिव इन में रहने वाले जोड़ों को भी शादीशुदा की ही तरह माना जाएगा। उनसे पैदा हुए बच्चों को भी पैतृक संपत्ति और अन्य विरासत के अधिकार शादीशुदा दंपत्ति की संतानों की तरह ही हासिल करने का अधिकार होगा।