INDORE. फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है, जो शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व है। इस साल महाशिवरात्रि शनिवार 18 फरवरी 2023 को पड़ रही है। इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की एकसाथ पूजा करने से जन्म जन्मांतर के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
महाशिवरात्रि पर शिव पंचाक्षरी से करें भोलेनाथ को प्रसन्न
पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि आदि गुरु शंकराचार्य ने शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र की रचना की थी। वह जो परम शिवभक्त थे। शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र पंचाक्षरी मन्त्र “नमः शिवाय’ पर आधारित है।
॥ श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम् ॥
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय,
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,
तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥1॥
मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय,
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय,
तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥2॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द,
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय,
तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥3॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य,
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय,
तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥4॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय,
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय,
तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥5॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
श्रीरुद्राष्टकम् का पाठ
इसी तरह गोस्वामी तुलसीदास ने रुद्राष्टकम् की रचना की थी। भगवान शिव को समर्पित यह रचना भोलेनाथ को प्रसन्न करती है और इसे पढ़ने वाले भी आनंदित होते हैं।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥2॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥4॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥7॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥8॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम् ॥