NEW DELHI NEWS. लोगों को बेहतर सुविधा देने के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय फास्टैग (FASTag) के इस्तेमाल को और बढ़ाने के तरीके खोज रहा है। अभी फास्टैग का इस्तेमाल नेशनल हाईवे पर टोल देने के लिए होता है। मंत्रालय चाहता है कि इसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने, पार्किंग और बीमा के लिए भी हो। इससे फास्टैग का इस्तेमाल और बढ़ेगा और लोगों को सुविधा होगी। साथ ही टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से कामकाज में पारदर्शिता आएगी।
दरअसल, नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के तहत काम करने वाली इंडियन हाईवेज एंड मैनेजमेंट कंपनी (IHMCL) ने फिनटेक कंपनियों के साथ एक बैठक की। इसमें फास्टैग सिस्टम के नए इस्तेमाल के बारे में विचार किया गया। मंत्रालय ने मीटिंग के बाद एक बयान में कहा कि इस मीटिंग का मकसद फिनटेक कंपनियों से फास्टैग के अलग-अलग पहलुओं पर जानकारी लेना था। जैसे कि नियम-कानून, शिकायतें, सुरक्षा और टोल के अलावा फास्टैग का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है। इससे फास्टैग का इस्तेमाल बढ़ेगा और इसे आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
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इस मीटिंग का एक और मकसद फिनटेक कंपनियों को मल्टी-लेन फ्री फ्लो (MLFF) टोलिंग के बारे में बताना था। इससे ये कंपनियां टोलिंग के सिस्टम को टेक्नोलॉजी से बदलने में मदद कर सकें। MLFF टोलिंग एक ऐसा सिस्टम है जिसमें बिना रुके टोल दिया जा सकता है। इसमें फास्टैग और गाड़ी के नंबर को RFID रीडर और ANPR कैमरों से पढ़ा जाता है और अपने आप टोल कट जाता है।
बता दें कि नेशनल इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (NETC) फास्टैग प्रोग्राम 1728 टोल प्लाजा पर चल रहा है। इनमें 1113 नेशनल हाईवे और 615 स्टेट हाईवे शामिल हैं। टोल का 98.5% पेमेंट फास्टैग से होता है। भारत में लगभग 11.04 करोड़ फास्टैग जारी किए गए हैं। ये फास्टैग 38 से ज्यादा बैंकों ने जारी किए हैं। एक रिपोर्ट्स में बताया गया है कि इस नीति के तहत हर टोल बूथ पर फास्टैग (FASTags) और कैमरे लगाए जाएंगे और टोल सीधे कार मालिक के बैंक खाते से वसूला जाएगा।
केंद्र सरकार नई टोल पॉलिसी को आसानी से लागू करने के लिए ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन (ANPR) टेक्नोलॉजी पर बेस्ड एडवांस सिस्टम शुरू करने की प्रक्रिया में है। यह नीति देश भर में एक्सप्रेसवे और राष्ट्रीय राजमार्गों पर यात्रा करने वाले लोगों को राहत देने के लिए बनाई गई है। बता दें कि मौजूदा समय में राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क नियम, 2008 के अनुसार, यूजर्स को एक सड़क परियोजना के अंतर्गत सड़क की लंबाई के आधार पर एक निश्चित राशि के टोल शुल्क का भुगतान करना होता है, जो सामान्यतः 60 किमी होता है।
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