GARIYABAND NEWS. छत्तीसगढ़ की शासन की आत्मसमर्पण-पुनर्वास योजना और आत्मसमर्पित साथियों के खुशहाल जीवन से प्रभावित होकर तीन हार्ड कोर माओवादियों ने आज आत्मसमर्पण किया है। गरियाबंद पुलिस की सतत जागरूकता अभियानों और शासन की पुनर्वास नीति के प्रचार प्रसार के परिणामस्वरूप एसडीके एरिया कमेटी के डिप्टी कमाण्डर दिलीप उर्फ संतू (8 लाख इनामी), मंजुला उर्फ लखमी (5 लाख इनामी), और सुनीता उर्फ जुनकी (5 लाख इनामी) ने आत्मसमर्पण किया। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादी अपने साथ हथियार भी लेकर आए हैं।
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आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों का परिचय
दिलीप उर्फ संतू – यह माओवादी नेता ग्राम केसेकोडी, थाना कोयलीबेड़ा, जिला कांकेर का रहने वाला है। 2012 में नक्सली शंकर (डीव्हीसीएम) द्वारा माओवादी संगठन में भर्ती कराया गया था। इसके बाद दिलीप ने विभिन्न माओवादी घटनाओं में भाग लिया और 2020 में डिप्टी कमाण्डर के रूप में एसडीके एरिया कमेटी में कार्य किया। उन्होंने कहा कि नक्सली संगठन में शामिल होने के बाद, कई हिंसक घटनाओं में भाग लिया, जिनमें सिकासेर के जंगल में मुठभेड़ और भालूडिग्गी पहाड़ी में 16 माओवादी मारे जाने की घटना शामिल हैं।
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मंजुला उर्फ लखमी – यह माओवादी नेता ग्राम गोंदीगुडेम, थाना गोलापल्ली, जिला सुकमा की रहने वाली हैं। 2016 में माओवादी संगठन में शामिल होने के बाद मंजुला ने विभिन्न क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियों में भाग लिया। वह एसडीके एरिया कमेटी में सदस्य के रूप में कार्य कर रही थीं। मंजुला ने भी सिकासेर और भालूडिग्गी पहाड़ी की घटनाओं का हिस्सा बनने की बात कही।
सुनीता उर्फ जुनकी – यह माओवादी नेता ग्राम पोटेन, थाना जांगला, जिला बीजापुर की रहने वाली हैं। 2010 में माओवादी संगठन में शामिल होने के बाद, उन्होंने बरगढ़ एरिया कमेटी में सदस्य के रूप में कार्य किया। सुनीता ने बताया कि 2025 में एक मुठभेड़ के दौरान, जहां माओवादी नेता विकास घायल हुए, वह भी उस घटनास्थल पर उपस्थित थीं।
आत्मसमर्पण के बाद जीवन में आएगा सुधार
इन तीनों माओवादियों ने बताया कि माओवादी संगठन में शामिल होने के बाद उन्हें कई प्रकार के अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उन्होंने माओवादी विचारधारा को खोखला करार दिया और बताया कि संगठन ने उन्हें मजबूर किया था, लेकिन अब वह शासन की आत्मसमर्पण नीति से प्रेरित होकर मुख्यधारा में लौट आए हैं।
आत्मसमर्पण के बाद तीनों माओवादियों को शासन द्वारा प्रदान की गई सुविधाओं में ईनाम राशि, स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार और आवास की सुविधाएं शामिल हैं। साथ ही, उनके खिलाफ दर्ज अपराधिक मामलों को समाप्त करने का भी वादा किया गया है।
सरकार की आत्मसमर्पण नीति से प्रभावित हुए माओवादी
आत्मसमर्पण के बाद तीनों माओवादी अब अपने परिवारों के साथ शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि आत्मसमर्पण करने वाले कई अन्य साथी, जैसे आयतु, संजय, मल्लेश, मुरली और अन्य, भी इसी नीति का लाभ उठा रहे हैं।
उनका मानना है कि माओवादी संगठन की खोखली विचारधारा और जंगलों में कठिनाइयों का सामना करने के बजाय, मुख्यधारा में लौटकर एक शांतिपूर्ण जीवन बिताना कहीं बेहतर है। आत्मसमर्पण के इस फैसले से इन माओवादी नेताओं ने न केवल अपनी, बल्कि अपने परिवारों की जिंदगी को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है।