TIRANDAJ NEWS. उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म मुंबई में 9 मार्च 1951 को हुआ था। जाकिर हुसैन के पिता उस्ताद अल्ला रक्खा भी एक मशहूर तबला वादक थे। 12 साल की उम्र से ही उन्होंने तबले की आवाज से सबका दिल जीतना शुरू कर दिया था। कॉलेज के बाद जाकिर हुसैन ने कला के क्षेत्र में कैरियर बनाना शुरू कर दिया था। 15 दिसंबर 2024 रात 10:56 (भारतीय समय के अनुसार) अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में इनका देहांत हो गया।
पिता से ली शुरुआती तालीम
जाकिर हुसैन का जन्म मुंबई में हुआ। संगीत की दुनिया में अपने तबले की आवाज को इन्होने 12 साल की उम्र से ही बिखेरना शुरू कर दिया था। वो बताते थे कि मुंबई में पलने-बढ़ने के कारण उनको हर तरह का संगीत सुनने को मिला करता था। मेरे पिता उस्ताद अल्ला रक्खा जो खुद एक मशहूर तबला वादक थे दुनिया भर में घूमते थे। वो तरह-तरह के टेप सुनने के लिए मुझे देते थे। मुझ पर सबसे ज़्यादा असर उनका ही था। संगीत की शुरुआती तालीम मुझे मेरे पिता से ही मिली। कैसे कहाँ टेबल पर हाथ रखना है, शब्दों के साथ कैसे संतुलन बिठाना है, घरानों की क्या ख़ासियत है।
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घर के बर्तन से बनाते थे धुनें
पिता की शिक्षा के बाद उन्होंने खुद को तरासने का काम शुरू कर दिया था। था। वो कभी ट्रेन, घोड़े तो कभी डमरू, तो कभी शंख जैसी चीज की धुन तबले से निकाल दिया करते थे। वो कई बार किचन के बर्तनों को उल्टा कर उसमें से भी संगीत बना लिया करते थे। जाकिर हुसैन पर लिखी किताब जाकिर एंड इज तबला ‘धा धिन धा’ में उनके ऐसे सारे किस्से मिल जाते है।
गोद में रखते थे तबला
जाकिर बताते थे कि शुरुआती दिनों उनके पास पैसों की कमी हुआ करती थी। इस लिए वो ट्रेनों के जनरल डिब्बों पर सफर किया करते थे। और जब उनको ट्रेन में बैठने के लिए सीट नहीं मिलती थी तो वे फर्श पर ही अखबार बिछाकर बैठ जाते थे। वो अपनी कला और तबले को सबकुछ मानते थे। इसलिए तबले को अपनी गोद में रखते थे, ताकि किसी व्यक्ति का पैर उसपर न पड़ जाए।
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1973 में आया था पहला एलबम
कॉलेज खत्म करने के बाद जाकिर हुसैन ने कला के क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करना शुरू कर दिया। उनका पहला एलबम लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड था जो साल 1973 में आया था। इसके बाद तो जाकिर हुसैन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समारोहों और एलबमों में अपने तबले का दम दिखाते रहे। जाकिर हुसैन भारत के साथ-साथ विश्व के कई देशों में भी लोकप्रिय हैं।
कला के क्षेत्र में मिले पुरस्कार और सम्मान
भारत सरकार द्वारा जाकिर हुसैन को कला के क्षेत्र में सन् 1988 में महज 37 वर्ष की उम्र में जब जाकिर हुसैन पद्म श्री का पुरस्कार मिला था। जो उस समय यह पुरस्कार पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। 2002 में संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण का पुरस्कार दिया गया था। संगीत का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी अवार्ड भी जाकिर हुसैन को 1992 और 2009 में मिला है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनको 22 मार्च 2023 को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।