BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में आयुर्वेदिक डॉक्टर ने अध्ययन अवकाश के दौरान बॉड व वेतन वृद्धि के शर्तों को चुनौती देते हुए याचिका दायर की। हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व बीडी गुरु के बेंच में हुई। कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि अध्ययन अवकाश के दौरान बॉड लगाना उचित और न्याय संगत दोनों था। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य ने अपने चिकित्सा कर्मियों के प्रशिक्षण में पर्याप्त संसाधनों का निवेश किया था और बदले में सेवा प्रतिबद्धता की आवश्यकता एक वैध नीतिगत उद्देश्य था। बांड से सुनिश्चित किया कि मानव पूंजी में राज्य का निवेश बर्बाद नहीं हुआ क्योंकि अधिकारी अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद जनता की सेवा करेंगे।
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बता दें, डॉ.रविचंद मेश्राम एक आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी को 2018 में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के दौरान नियुक्त किया गया था। उन्हें डिग्री पूरी करने के लिए अध्ययन अवकाश दिया गया था लेकिन राज्य ने कई शर्तें लगाई। इन शर्तों में दो प्रमुख थी अग्रिम वेतन वृद्धि से इनकार करना और पांच साल तक सेवा करने के लिए एक बांड पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता शामिल थी। डॉ.मेश्राम ने इन शर्तों को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि वे छत्तीसगढ़ सिविल सेवा नियम 2010 के तहत अधिकृत नहीं है।
अपीलकर्ता की ओर से वकील ने तर्क दिया कि शर्तें अनुचित रूप से कठोर थी और बिना किसी कानूनी आधार के लगाई गई थी। उन्होंने तर्क दिया कि सीजी सिविल सेवा (छुट्टी) नियम बांड लगाने या वेतन वृद्धि से इनकार करने को अधिकृत नहीं करते हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि शर्तें भेदभावपर्ण थी क्योंकि अन्य विभागों में समान कर्मचारियों को इस तरह के प्रतिबंधों के बिना अध्ययन अवकाश दिया गया था।
इसके अतिरिक्त डॉ.मेश्राम ने दावा किया कि उन्हें दबाव में शर्तों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया था। क्योंकि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था। राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता ने तर्क दिया कि शर्तें सरकारी नीति के अनुरूप थी राज्य ने चिकित्सा अधिकारियों के प्रशिक्षण में महत्वपूर्ण वित्तीय निवेश का हवाला देते हुए बॉड को उचित ठहराया। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलिले सुनने के बाद बॉड पर चर्चा की साथ ही अपीलकर्ता के अपील को खारिज करते हुए राज्य शासन के शर्तों को बरकरार रखा।