BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में पेंशन व ग्रेच्युटी को लेकर एक मामला सामने आया है। हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्त उप संचालक की पेंशन से 9.23 लाख रुपये वसूलने के आदेश को निरस्त कर दिया है। इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस विभू दत्त गुरु ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पेंशन और ग्रेच्युटी कोई उपहार नहीं, बल्कि कर्मचारी को निष्ठापूर्ण सेवा से हासिल होती है। जिसे संविधान के अनुच्छेद 300 ए के तहत बिना कानूनी प्रक्रिया के नहीं छीना जा सकता है।
बता दें, मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा निवासी की नियुक्ति कृषि विभाग में 29 मार्च 1990 को सहायक संचालक के पद पर हुई थी। वर्ष 2000 में उप संचालक के पद पर प्रमोशन हुआ। बाद में उनको ग्रेडेशन सूची में सुधार के चलते उन्हें फिर से सहायक संचालक बना दिया गया। इसके खिलाफ पूर्व में उन्होंने याचिका दायर की थी।
कोर्ट के आदेश पर उन्होंने उप संचालक के पद पर सेवाएं दी और 31 जनवरी 2018 को सेवानिवृत्त हुए। सेवा काल में उन पर गबन का आरोप लगाते हुए नोटिस जारी कर दिया गया। उन्होंने जवाब में कहा कि कोई गबन नहीं किया और सभी कार्य कानून के अनुसार कने की जानकारी दी।
इसके बाद भी उनको 13 दिसंबर 2018 को सेवानिवृत्ति के बाद भी कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। उन्होंने 25 जनवरी 2019 को जवाब दिया और आरोपों से इनकार किया। फिर भी 15 फरवरी 2021 को आदेश जारी कर उनकी पेंशन से 9.23 लाख रुपये वसूलने की अनुमति दी गई।
इसी के खिलाफ उन्होंने वर्ष 2022 में याचिका दायर की थी। राज्य सरकार ने कोर्ट को जवाब देते हुए कहा कि वर्ष 2016-17 में ही सरकारी खजाने के दुरूपयोग को लेकर नोटिस जारी हुए थे। जवाब मिलने के बाद कार्रवाई की गई। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कार्रवाई सेवानिवृत्ति के बाद की गई।
वहीं कोर्ट ने इस दौरान याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई विभागीय या न्यायिक कार्यवाही नहीं हुई जिसमें उन्हें दोषी ठहराया गया हो। सिर्फ कारण बताओ नोटिस ही जारी किया गया। ऐसे में 1976 के नियम 9 के तहत पेंशन से वसूली का आदेश उचित नहीं है।