BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने तलाक के कई मामले आते है। जहां पर कई कारण भी बताए जाते हैं लेकिन एक मामला ऐसा सामने आया जहां पर तलाक के लिए पति ने पत्नी को मानसिक बीमार बताया। इस पर पहले ही फैमिली कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था लेकिन उस फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में पत्नी को मानसिक बीमार बताया। कोर्ट में सबूत भी नहीं पेश किया। हाईकोर्ट ने सबूत के अभाव में याचिका को खारिज कर दिया है। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस नरेन्द्र कुमार व्यास की बेंच में हुई।
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बता दें, रायगढ़ के कपड़ा व्यावसायी मुस्लिम समुदाय से है। उन्होंने पहले फैमिली कोर्ट में परिवाद पेश किया था। परिवाद में बताया गया था कि उनका निकाह 29 दिसंबर 2007 को मुस्लिम रीति-रिवाज से हुआ था। मुस्लिम कानून के तहत विवाह एक अनुबंध होता है और यह अनुबंध धोखे से कराया गया था। पति ने आरोप लगाया कि शादी के बाद उसकी पत्नी का व्यवहार असामान्य था।
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वह कभी भी गुस्सा हो जाती है और मारपीट भी करती है। आत्महत्या की भी कोशिश करती है। साथ ही कभी भी किसी पर भी हमला कर देती थी। इन सबके बाद भी वह विवाह को निभा रहे थे लेकिन अब संभव नहीं हो पा रहा है।
शादी के एक साल बाद उसे दो जुड़वा बच्चे हुए। पत्नी मानसिक रूप से बीमार है इसलिए बच्चों को वह ही देखता है। इन सब में उसके व्यापार में काफी नुकसान हुआ है। 2019 में वह बहुत ज्यादा आक्रामक हो गई। उसके बाद से ही उससे मुझे व बच्चों को खतरा है।
इसके बाद उसे रांची इलाज के लिए भेजा जहां पर उसका उपचार चला लेकिन ठीक नहीं हुई। फिर वहां से आने के बाद वह मायके चली गई। फैमिली कोर्ट ने इस संबंध में उसकी पत्नी को नोटिस जारी किया।
इस पर वह कोरोना महामारी के चलते नहीं आ पायी। लगातार अनुपस्थित रही। इस दौरान पति ने अपना बयान दर्ज कराया और चार गवाह पेश किए लेकिन ठोस सबूत के अभाव में मामल को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने भी माना सबूत का अभाव
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को देखते हुए इस बात को स्पष्ट किया कि किसी भी मामले में ठोस सबूत महत्वपूर्ण होता है। बिना सबूत के कोई फैसला नहीं ले सकते है। पत्नी को मानसिक रूप से बीमार बताया जा रहा है लेकिन इसके लिए कोई सबूत नहीं ऐसे में विवाह को शून्य घोषित नहीं किया जा सकता। याचिका को खारिज कर दिया।