BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में धोखाधड़ी से विवाह करने के मामले में एक याचिका दायर की गई। याचिका पत्नी की ओर से दायर किया गया है। इसमें धोखा देकर अधिक उम्र के व्यक्ति से विवाह करने और प्रताड़ित करने पर तलाक की मंजूरी मांगी गई है। कोर्ट में याचिका की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस संजय जायसवाल के बेंच में हुई। कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए पत्नी को तलाक के लिए मंजूरी दे दी है।
बता दें, मामला जांजगीर-चांपा क्षेत्र का है। हाईकोर्ट में दायर याचिका के मुताबिक जांजगीर निवासी युवती की शादी हिन्दू रीति रिवाज से 5 मई 2011 को हुई थी लेकिन विवाह के तुरंत बाद पति और उसके परिवार के सदस्यों ने अपीलकर्ता के साथ क्रूरता करना शुरू कर दिया। पति ने विवाह के समय अपनी वास्तविक आयु भी छिपाई थी और झूठा बयान दिया था कि वह एक सरकारी कर्मचारी है। विवाह के बाद पत्नी अलग रहने लगी।
इसके बाद पति ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत पारिवारिक न्यायालय जांजगीर-चांपा के समक्ष आवेदन दायर किया और 26 सितंबर 2018 के आदेश के अनुसार पति के पक्ष में निर्णय दिया गया। अपीलकर्ता को उसके साथ्ज्ञ रहने का निर्देश दियाग या। अपीलकर्ता द्वारा भी एक याचिका दायर की गई थी लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था क्योंकि पारिवारिक न्यायालय में दोनों के बीच समझौता हो गया था। इसके बाद अपीलकर्ता पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय के समक्ष हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)बी के तहत आवेदन दायर किया। जिसे आरोपित निर्णय और डिक्री द्वारा खारिज कर दिया गया।
जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता पत्नी ने याचिका दायर की। अपीलकर्ता के वकिल ने कहा कि विवादित निर्णय और डिक्री कानून और तथ्यों दोनों की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है और इसे रद किया जाना चाहिए। कोर्ट इस बात पर विचार करने में विफल रहा है कि अपीलकर्ता पत्नी और प्रतिवादी पति अपनी विवाह के तुरंत बाद अलग-अलग रह रहे हैं और उनके साथ रहने की कोई संभावना नहीं है। इस पर कोर्ट ने यह भी नहीं माना था कि विवाह के समय पति ने अपनी वास्तविक उम्र छिपाई थी और झूठा बयान दिया था कि वह सरकारी कर्मचारी है इस तरह उसने उसके साथ धोखाधड़ी की। विवाह के समय पति ने अपनी उम्र 28 वर्ष ताया था जबकि उसकी वास्तविक उम्र 40 वर्ष थी। वहीं पत्नी 18 वर्ष की थी।
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कोर्ट ने दी तलाक की मंजूरी
कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि हम इस बात से संतुष्ट है कि यह विवाह पूरी तरह से टूट चुका है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के तहत विवाह का पूरी तरह से टूट जाना तलाक का आधार नहीं है मगर एक ऐसा विवाह जो सभी के लिए खत्म हो चुका है न्यायालय के आदेश से उसके उद्देश्यों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता। दोनों पक्षे के बयान के साथ-साथ दस्तावेज के अनुसार वे 2011-12 से अलग रह रहे है। इसे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक मामले का जिक्र करते हुए विवाह को भंग करने की मंजूरी दे दी।