BILASPUR. सेवानिवृत्त शिक्षक को बीमा पॉलिसी में ज्यादा मुनाफे का लालच देकर जालसाजों ने 79 लाख 85 हजार 912 रुपये की ठगी कर ली थी। इसके बाद भी उनसे रुपये मांगे जा रहे थे। धोखाधड़ी की जानकारी होने पर सेवानिवृत्त शिक्षक ने साइबर थाने में शिकायत की। इसकी जांच के बाद पुलिस ने बिहार के जमुई जिले में दबिश देकर दो आरोपित को गिरफ्तार कर लिया है। वहीं आरोपितों से उनके साथियों की जानकारी ली जा रही है।
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बता दें, धोखाधड़ी की जांच करते पुलिस ने आरोपितों को बिहार से धर दबोचा है। डीएसपी निमितेष सिंह ने बताया कि बाजपेयी कैसल मे ंरहने वाले रिटायर्ड शिक्षक ने धोखाधड़ी की शिकायत की थी। पीड़ित ने बताया वे अप्रैल 2023 को शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हुए। उनके मोबाइल पर 2 मई की सुबह करीब 10 बजे अलग-अलग अनजान नंबर से कॉल आया। फोन करने वालों ने खुद को निजी बीमा कंपनी का सीईओ और मैनेजर बताया। जालसाजों ने टीचर को बताया कि कंपनी का एजेंट उनके निवेश पर मुनाफा कमा रहा है।
एजेंट को हटा देने से मुनाफे की रकम सीधे टीचर को मिलने की बात कहीं। जालसाजों की बातों में आकर रिटायर्ड टीचर ने 2 मई 2023 से 13 जून 2024 के बीच अलग-अलग कर जालसाजों के बताए खाते में 79 लाख 85 हजार 921 रुपये जम कर दिए। इसके बाद भी उनसे रुपये मांगे जा रहे थे। मोटी रकम गंवाने के बाद टीचर को धोखाधड़ी की जानकारी हुई। उन्होंने इसकी शिकायत रेंज साइबर थाने में की। इस पर पुलिस ने धोखाधड़ी और आइटीएक्ट के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू की।
साइबर पोर्टल से मिली जानकारी और बैंक डिटेल की जांच के बाद पुलिस को जालसाजों का सुराग मिला। इस पर रेंज साइबर थाने में पदस्थ एसआइ अजय वारे अपनी टीम लेकर बिहार के जमुई पहुंचे। वहां पर टीम ने तीन दिनों तक रहकर जालसाजों की जानकारी जुटाई।
इसके बाद जमुई जिले के खैरा थाना अंतर्गत झुडो निवासी गणेश कुमार मंडल उर्फ मोचा उम्र 27 वर्ष और अभयपुर निवासी चिंटू यादव उम्र 26 वर्ष को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई। इसमें उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर धोखाधड़ी को अंजाम देना बताया। आरोपित को गिरफ्तार कर शहर लाया गया है। न्यायालय में रिमांड पर लेकर उनके साथियों की जानकारी जुटाई जा रही है।
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दूसरों के नाम से खुलवाया था ठगों ने
पुलिस की पूछताछ में पता चला कि आरोपित भोले-भाले लोगों को मामूली मुनाफे का लालच देकर उनके नाम पर बैंक में खाता खुलवा लेते ोि। इसमें वे अपने फर्जी मोबाइल सिम का नंबर देते थे। साथ ही बैंक एटीएम अपने पास ही रखते। जालसाजी की रकम वे उन्हीं खातों में ट्रांसफर कराते थे। इसके बाद एटीएम और मोबाइल एप के माध्यम से रुपये को इधर-उधर कर रहे थे।