BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में कोर्ट ने तलाक के मामले में एक बड़ा फैसला दिया है। परिवार न्यायालय धमतरी के तलाक के फैसले के खिलाफ दायर याचिका में दी। कोर्ट ने कहा कि नोटिस की तामील महज औपचारिकता नहीं हैं और यह वास्तवकि और सार्थक होना चाहिए। ताकि दूसरे पक्ष का न्यायालय के समक्ष उचित प्रतिनिधित्व हो सके। दरअसल इस केस में पति जब दूसरी शादी कर लिया तब पत्नी को इसकी जानकारी मिली कि परिवार न्यायालय ने पति को तलाक की अनुमति दे दी है। याचिकाकर्ता पत्नी ने हाईकोर्ट में गुहार लगाते हुए याचिका दायर की। इस पर कोर्ट ने दोबारा न्यायालय में आवेदन पेश करने और परिवार न्यायालय को मामले की नए सिरे से सुनवाई के निर्देश दिए है।
बता दें, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर हुई है। याचिका में बताया गया कि याचिकाकर्ता को अपने तलाक की जानकारी नहीं थी। जब उसके पति ने दूसरी शादी कर ली तब उसे पता चला की उसको न्यायालय से तलाक की अनुमति मिल गई है। महिला को इसकी जानकारी ही नहीं हुई, लेकिन कोर्ट का नोटिस उसके नाम से जारी भी हुआ लेकिन पता दूसरा होने के कारण उसे न तो नोटिस मिला और न ही इस बात का पता चला।
कोर्ट ने भी लगातार अनुपस्थित रहने पर फैसला सुनाया और तलाक की अनुमति दें दी। महिला ने परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की। अब कोर्ट ने इस मामले की पुनः सुनवाई का आदेश दिया है, ताकि दोनों पक्षों की ओर से अपना पक्ष रखा जा सके।
याचिकाकर्ता करुणा साव ने अपनी याचिका में बताया कि 29 अप्रैल 2016 को मनेन्द्र साहू के साथ उनका विवाह हुआ। छह साल बाद 31 मार्च 2022 को परिवार न्यायलय ने पति की याचिका पर एकपक्षीय आदेश जारी करते हुए तलाक की अनुमति दे दी है। इस दौरान उनका पक्ष नहीं सुना गया है। याचिका के अनुसार अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत परिवार न्यायालय के समक्ष दायर तलाक की याचिका पर उसे कोई नोटिस नहीं दिया गया था। तलाक के आवेदन में पति ने उनका दो अलग-अलग पता लिखा है। वह जिस जगह पर निवास करती है वहां कोर्ट का कोई नोटिस मिला ही नहीं है। वह तलाक की डिक्री तभी जान पायी जब पति ने दूसरी शादी कर ली।
नोटिस भेजा दूसरे पते पर
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस संजय एस अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने कहा कि पंजीकृत डाक से समंस भेजा गया था। वह भी उस पते पर जहां वह रहती ही नहीं। नोटिस वापस आने के बाद परिवार न्यायालय ने 26 मार्च 2022 को अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि फेमिली कोर्ट के रिकॉर्ड से पता चलता है कि याचिकाकर्ता पत्नी को एक पंजीकृत नोटिस एक ही पते पर जारी किया गया था। फेमिली कोर्ट के समक्ष मामला केवल लौटाए गए पंजीकृत लिफाफे के आधार पर फैसला सुनाना निर्णायक तथ्य नहीं हो सकता।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पत्नी को परिवार न्यायालय के सामने उपस्थित होकर अपने बचाव के लिए सुनवाई का अवसर देते हुए परिवार न्यायालय के फैसले को रद कर दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि दोनों पक्ष 26 जून 2024 को फेमिली कोर्ट धमतरी के समक्ष उपस्थित होंगे और उसके बाद 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के भीतर अपीलकर्ता पत्नी अपना लिखित बयान दर्ज कराएगी और फेमिली कोर्ट उसके बाद कानून के दायरे में अपना फैसला सुनाएगा।