BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में 4 जवानों की हत्या के आरोपित सीआरपीएफ जवान की पत्नी ने याचिका दायर की है। याचिका में अपने साथी जवानों की हत्या के एक साल बाद जेल में पति की मौत व उनके बर्खास्तगी के फैसले को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण निर्ण में सीआरपीएफ के कोर्ट आफ इंक्वायरी के आधार पर बर्खास्तगी आदेश को अवैध माना है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता अपने पति की मृत्यु यानी 24 अप्रेल 2013 तक मिलने वाले सभी सेवा लाभों की भी हकदार होगी।
बता दें, प्रीति देवी तिवारी ग्राम नरौना जिला लखनऊ उत्तर प्रदेश ने वरिष्ठ अधिवक्ता केए अंसारी, मीरा अंसारी और अमन अंसारी के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपने पति के खिलाफ केन्द्र सरकार व सीआरपीएफ की कार्रवाई को चुनौती दी थी। याचिका के अनुसार पति स्वर्गीय दीप कुमार तिवारी छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र अरनपुर जिला दंतेवाड़ा में कमांडेंट 111 बटालियन, सीआरपीएफ कैंप में तैनाथ थे।
उन पर आरोप था कि उन्होंने 25 दिसंबर 2012 की रात में सीआरपीएफ के चार जवानों की हत्या की थी और अपने बैरक के एक कांस्टेबल को गोली मारकर घायल कर दिया था। कोर्ट आफ इंक्वायरी और विभागीय जांच के बाद दोषी जवान को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। जेल में बंद रहने के दौरान 24 अप्रैल 2013 को उनकी मृत्यु हो गई।
जेल में बंद रहने के दौरान स्वर्गीय दीप कुमार तिवारी के अपील को खारिज कर दी गई थी। इसके तहत अपीलीय प्राधिकारी ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी के छह मार्च 2013 के आदेश की पुष्टि की है। उनके पति को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। चार जवानों की हत्या के आरोप में राज्य पुलिस द्वारा आईपीसी की धारा 302 व 307 के तहत गिरफ्तार किया।
उसी दिन 28 दिसंबर 2012 के आदेश से 25 दिसंबर 2012 से निलंबित कर दिया गया। इसके बाद जांच अदालत ने अपने निष्कर्ष और सिफारिश से माना कि दीप कुमार तिवारी जवानों की हत्या के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। जांच अदालत की रिपोर्ट के आधार पर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
कोर्ट ने की टिप्पणी
याचिका की सुनवाई जस्टिस संजय के अग्रवाल के बेंच में हुई। उन्होंने फैसले में कहा कि प्राकृतिक न्याय सिद्धांत की न्यूनतम आवश्यकताओं का अनुपालन किए बिना अपीलकर्ता के खिलाफ ऐसी प्रारंभिक जांच शुरू नहीं की जा सकती थी, जो निष्पक्ष न्याय के सभी सिद्धांतों के खिलाफ है। अपीलीय प्राधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि वह पुलिस सेवा के लिए पूर्ण अयोग्यता साबित करने वाले गंभीर कदाचार का दोषी था और उसे दी गई सजा कदाचार के अनुरूप है।
अपीलीय प्राधिकारी प्रासंगिक तथ्यों पर विचार करने में विफल रहा और अप्रासंगिक कारकों पर अपना निर्णय आधारित किया। लिहाजा अनुशासनात्मक प्राधिकारी दस्तावेज व साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा है। अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने सीआरपीएफ नियमों के नियम 27 (सीसी) (11) को लागू करने में गंभीर कानूनी त्रुटि की है और उनके द्वारा बताए गए कारण कारण नहीं हैं और अनुशासनात्मक प्राधिकारी का सनक और इच्छा पर आधारित है।
पुनरीक्षण प्राधिकारी ने भी गुण-दोष के आधार पर पुनरीक्षण पर विचार न करके और यह मानते हुए किया याचिकाकर्ता ने 24 अप्रैल 2013 को जेल में अपने पति को खो दिया है, पुनरीक्षण कायम रखने योग्य नहीं हैं, अवैधता को कायम रखा है। ऐसे में याचिकाकर्मा के पति की सेवाओं को समाप्त करने वाले आपेक्षित आदेश और अपीलीय और पुनरीक्षण आदेशों को रद् किया जाता है।