BILASPUR. बिलासपुर हाईकोर्ट से बंदूक रखने से संबंधित एक केस सामने आया है जिसे कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए याचिका खारिज कर दिया। हाई कोर्ट के जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बंदूक रखना कोई मौलिक अधिकार नहीं बल्कि यह सिर्फ वैधानिक विशेषाधिकार है।
दरअसल, रायपुर निवासी हरदीप सिंह बेनीपाल ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। इस याचिका में आर्म्स एक्ट के सेक्शन-3 के सब सेक्शन-3 में किए गए संशोधन और रायपुर कलेक्टर द्वारा जारी आदेश की वैधानिकता को चुनौती देते हुए निरस्त करने की मांग की गई थी।
लगाई गई याचिका में यह कहा गया कि उनके पास तीन बंदूकों का लाइसेंस है। उनके पिता के नाम पर जो लाइसेंस था वह बाद में उनके नाम पर ट्रांसफर हो गया। लेकिन आर्म्स एक्ट 1959 के (सेक्शन-3 के सब सेक्शन-3) में 13 दिसंबर 2019 के संशोधन अनुसार एक व्यक्ति अधिकतम दो बंदूकों के लाइसेंस ही रख सकता है।
कलेक्टर ने 10 सितंबर 2020 को हरदीप सिंह को तीसरे बंदूक के लाइसेंस के लिए शुल्क जमा करने के निर्देश दिए थे। इसपर हाई कोर्ट की प्रारंभिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के सचिव, डायरेक्टर आर्म्स, केंद्रीय गृह मंत्रालय, रायपुर के कलेक्टर और एसपी को नोटिस जारी की।
रायपुर कलेक्टर का आदेश का सही– हाईकोर्ट
इस मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने फैसले सुनाया। इसमें कहा गया कि बंदूक रखना कोई मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि वैधानिक तौर पर दिया गया विशेषाधिकार है। हाई कोर्ट ने एक्ट में संशोधन और रायपुर के कलेक्टर के आदेश को सही ठहराया और हरदीप की लगाई गई याचिका को खारिज कर दिया।