तुरंत चारों एक मत होकर एक ब्रांड की अंग्रेजी शराब मंगवाए। स्माल से लेकर लार्ज पेग का दौर चला और घंटों चलता रहा। सिगरेट भी धड़ाधड़ पीते गए और मंगवाते भी रहे। दो पेग के बाद ही सबसे बड़े अफसर टाइट हो गए और फिर डिनर ऑर्डर कर दिए। करीब ढाई से तीन घंटे तक चली बैठकी के बाद पेग खत्म हो गया और फिर एक-एक रोटी के बाद नशे की हालत में बिल मंगवाया गया। बिल देखकर टाइट हो चुके अफसर का पूरा नशा उट गया। बिल ने चारों का नशा फाड़ दिया। क्योंकि 12 रुपए वाली सिगरेट का रेट 30 रुपए, 20 रुपए वाला सोडा 70 रुपए, 120 से 140 रुपए में मिलने वाला एक पेग 180 रुपए, पापड़ 70 रुपए ऐसे ही लंबे बिल के रेट को देखकर चारों चौंक गए। बिल देखकर हतप्रभ अधिकारी वहां ज्यादा आर्गुमेंट भी नहीं कर पाए। क्योंकि उन्हें किसी तरह से अपने आप को जाहिर नहीं करना था। अपना परिचय देकर खुद की फजीहत कराने से और मोलभाव करने से बचना चाहते थे। बेचारे बड़े अफसर पैसा दिए और वहां ऑर्डर किए हुए फिल्टर्ड पानी के बॉटल को तत्काल कैंसल करवा दिया और वहां से तुरंत निकलने में भी अपनी बेहतरी समझे।
फिर बेचारी बड़े अफसर अंजोरा के एक ढाबे में आए और अपने अधूरे डिनर के कोटे को कंप्लीट किया। लेकिन तब फट चुके नशे को चढ़ाने ढाबे में दारू के जुगाड़ में लगे रहे लेकिन जुगाड तकनीक चल नहीं पाया। परिचय देते तो बेज्जती होती लेकिन उम्मीद था कि ढाबे वाले दारू का बंदोबस्त करवा देंगे मगर मन ही मन यह भी भय सता रहा था कि कहीं अधिकारी जानकर ज्यादा आवभगत के चलते बैठाने से ही बहानेबाजी या टाल-मोटल न कर दें। नशे की हालत में बेचारे बड़े अफसर इसे कई जगह घूम-घूमकर कह भी डाले। अपना दुखड़ा भी रो डाले। नशे की हालत में लोगों से पीड़ित अफसर बाकायदा बिल भी दिखा डाले।