INDORE. आरती का अर्थ होता है संपूर्णता। कोई भी यज्ञ-अनुष्ठान और पूजा पाठ तभी पूर्ण माना जाता है, जब पूजा के बाद संबंधित देवता की आरती की जाती है। शास्त्रों और पुराणों में के अनुसार, उचित विधि और नियम से की गई आरती को ही देवी-देवता स्वीकार करते हैं। इसके लिए कुछ नियम हैं।
अगर आरती करते हुए आपको भी कंफ्यूजन होता है कि आरती की थाली को दाईं ओर घुमाएं या बाईं ओर। एक बार आरती की थाली को घुमाएं या तीन बार या सात बार? और घी के दीपक से आरती करें या कपूर से, इससे क्या फल मिलता है, तो इंदौर के ज्योतिषाचार्य आचार्य पंडित गिरीश व्यास से जानिए इसके पूरे नियम।
जानिए आरती कैसे करें, किसका लगाएं दीपक
हमेशा भगवान के आगे थोड़ा झुककर आरती करनी चाहिए। दक्षिणावर्ती दिशा में यानी घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा में आरती की थाली को घुमाना चाहिए। आरती हमेशा एक ही स्थान पर खड़े होकर करनी चाहिए।
चार बार भगवान के चरणों की, दो बार नाभि की, एक बार मुख की और इसके बाद सभी अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए। ऐस तरह से 14 बार आरती करने से आपका प्रणाम उन चौदह भुवनों तक पहुंचता है जो भगवान में विद्यमान हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार, मंत्र और पूजा की पूरी विधि न जानने वाला भी यदि भगवान की आरती में शामिल हो जाता है, तो उसे पूरी पूजा का फल मिल जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, घी के दीपक से आरती करने उसे करोड़ों कल्प तक स्वर्ग में स्थान मिलता है। कपूर से आरती करने से अनंत की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति पूजा में की जाने वाली आरती को देखता है वह सर्वोच्च पद प्राप्त करता है।
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