BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में तलाक के एक मामले में हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। याचिका में पति ने पत्नी के अन्य धर्म को मानने व अपने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की बात बताई है। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस संजय जायसवाल के बेंच में हुई। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता पत्नी ने खुद स्वीकार किया है कि पिछले 10 साल से उसने किसी भी तरह की पूजा नहीं की है और इसके बजाए वह चर्च में प्रार्थना के लिए जाती है। यह मामला अलग-अलग धर्मों के व्यक्तियों के बीच विवाह का नहीं है। पत्नी ने अपने पति के धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाया और अपमानित किया। पत्नी का ऐसा व्यवहार एक धर्मनिष्ठ हिन्दू पति के प्रति मानसिक क्रूरता के बराबर है।
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बता दें, मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले के करंजिया निवासी नेहा जो मसीही धर्म का पालन करती है। उसने 7 फरवरी 2016 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर निवासी विकास चंद्रा से हिन्दू रीति-रिवाज से विवाह किया था। विवाह के कुछ महीनों बाद से ही नेहा ने हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और देवी-देवताओं का उपहास करना शुरू कर दिया। दिल्ली में नौकरी कर रहे विकास के साथ कुछ समय बिताने के बाद नेहा वापस बिलासपुर लौट आयी और फिर क्रिश्च्यिन धर्म अपनाते हुए चर्च जाना शुरू कर दिया।
पत्नी के इस व्यवहार से परेशान होकर विकास ने परिवार न्यायालय में तलाक की अर्जी दी। सुनवाई के बाद परिवार न्यायालय ने विकास के पक्ष में फैसला सुनाते हुए तलाक की डिक्री जारी की। पत्नी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट में पत्नी नेहा ने खुद स्वीकार किया कि उसने 10 वर्षों से किसी भी हिन्दू अनुष्ठान में हिस्सा नहीं लिया है। इस पर कोर्ट ने दोनों पक्षों की बातें सुनी। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और नेहा की अपील को खारिज कर दिया।
रामायण-महाभारत का दिया हवाला
कोर्ट ने फैसले के दौरान रामायण-महाभारत का उल्लेख करते हुए कहा कि सिर्फ रामायण-महाभारत में ही नहीं बल्कि मनु स्मृति में भी कहा गया है कि पत्नी के बिना कोई भी यज्ञ अधूरा है। धार्मिक कर्म में पत्नी-पति के साथ बराबर की भागीदार होती है। पति अपने परिवार का इकलौता बेटा है उसे परिवार के सदस्यों के लिए धार्मिक अनुष्ठान करना होता है। इसलिए कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।