BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए मध्यस्थता अधिनियम की धारा 48 का हवाला देते हुए स्पष्ट किया है कि किसी विदेशी अवार्ड को लागू करने से तभी इंकार किया जा सकता है जब वह भारत की सार्वजनिक नीति के विरूद्ध हो। मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक तिवारी की सिंगले बेंच में हुई। कोर्ट ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान बैंकिंग क्षेत्र में अपनी सेवाएं जारी रखी और इसे आवश्यक सेवाओं के अंतर्गत माना गया। इसलिए उक्त अवार्ड को सार्वजनिक नीति के विपरीत नहीं कहा जा सकता।
ये हैं पूरा मामला
6 मार्च 2020 को ई-मेल के माध्यम से 50 हजार मीट्रिक टन कोयले की बिक्री के लिए एक अनुबंध हुआ। इसमें स्टैंडर्ड कोयला व्यापार समौता संस्करण 8 (स्कोटा) के नियम और शर्तें शामिल थी। अनुबंधर के तहत प्रतिवादी को 31 मार्च 2020 से पहले डिलीवरी शुरू होेने से 10 दिन पहले ऋण पत्र (एलसी) खोलना था लेकिन वह समय पर ऐसा करने में विफल रहा। इस उल्लंघन के बाद आवेदक के पक्ष में एक मध्यस्थता अवार्ड और लागत अवार्ड पारित किया गया। चूंकि प्रतिवादी की संपत्ति छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित थी।
इसलिए उक्त विदेशी अवार्ड को मान्यता देने के लिए आवेदन दायर किए गए। अदालत ने स्पष्ट किया कि विदेशी अवार्ड को तब तक लागू करने से इंकार नहीं किया जा सकता जब तक कि यह भार की सार्वजनिक नीति का उल्लंघन नहीं करता। इसके साथ ही कोर्ट ने वाणिज्यिक मंत्रालय की ओर से 25 अक्टूबर 1976 को जारी अधिसूचना का भी उल्लेख किया।
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कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का दिया हवाला
हाईकोर्ट ने मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि 1996 अधिनियम की धारा 48 अवार्ड प्रवर्तन चरण में विदेशी अवार्ड पर दूसरी नजर डालने का असर नहीं देती है। धारा 48 के तहत जांच का दायरा योग्यता के आधार पर विदेशी अवार्ड की समीक्षा की अनुमति नहीं देता है। मध्यस्थों ने उक्त मुद्दे पर सावधानीपूर्वक विस्तार से विचार किया है और पाया है कि बैंक और शिपिंग अपवादित उद्योग हैं और वे लॉकडाउन नियमों के अधीन नहीं है।
हाईकोर्ट ने कहा कि तय अवधि के दौरान संबंधित व्यक्ति समक्ष प्राधिकारियों की अनुमति प्राप्त करने के बाद बैंक से संपर्क कर सकता था। बैंकिंग क्षेत्र ने ऐसी असाधारण परिस्थितियों में प्रत्येक नागरिक की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक सेवाएं प्रदान करना जारी खा है ताकि किसी भी वित्तीय कठिनाई से बचा जा सके। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि इस आधार पर अवार्ड भारत की सार्वजनिक नीति के विपरीत या उसके विरूद्ध नहीं होंगे और प्रतिवादी ऋणी के वकील द्वारा उठाई गई उक्त आपत्ति संधारणीय नहीं है।