BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में 26 साल से आरोपी बताए जाने वाले बैंक प्रबंधक को राहत मिली है। याचिककर्ता पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया और सीबीआई की विशेष न्यायालय में सजा सुनाई गई। विशेष न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय जायसवाल के बेंच में हुई। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 26 साल के बाद दोष मुक्त किया गया। हाईकोर्ट ने गवाह व सबूतों की विश्वसनियता नहीं होने पर याचिकाकर्ता को राहत दी है।
बता दें, प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत 95 हजार रुपये लोन स्वीकृत के भुगतान पर 7 हजार रुपये रिश्वत लेने के आरोप में फंसे बैंक प्रबंधन ने राहत की सांस ली है। कोर्ट में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा के निर्देशानुसार पुराने व लंबित मामलों को निराकृत करने कहा था। इसी के तहत कोर्ट में इस लंबित मामले की सुनवाई कर मामले को निराकृत किया गया है। आखिरकार बैंक प्रबंधक को दोषमुक्त किया गया।
क्या था मामला
प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत 95 हजार रुपये लोन स्वीकृत होने की जानकारी बैंक प्रबंधक ने शिकायतकर्ता को दी थी। इसके लिए बैंक में खाता खोलने, दस्तावेजीकरण, मार्जिन मनी व स्टाम्प शुल्क लगने की जानकारी दी। इस पर 7 हजार रुपये लगने की बात बताई। शिकायतकर्ता ने उक्त राशि मांगे जाने की शिकायत सीबीआई में कर दी।
सीबीआई ने शिकायतकर्ता के बात पर बैंक प्रबंधक को ट्रैप करने के लिए कैमिकल युक्त रुपये दिए और प्रबंधक को शिकायतकर्ता ने राशि दी। तब सीबीआई ने मामला दर्ज कर लिया जबकि बैंक प्रबंधक ने शिकायतकर्ता को जिला उद्योग केन्द्र के नाम का वह पत्र जिसमें सारी बातें बताई थी वह भी दी थी।
जब मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो इस बात की पुष्टि देना बैंक के मुख्यालय से हुई की राशि 6900 प्रोसेसिंग के तहत ली जा रही थी। कोर्ट ने सबूतों व गवाहों को अविश्वसनीय मानकर मामला खारिज कर दोष मुक्त कर दिया।
कोर्ट ने सावधानी बरतने की दी सलाह
इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में अदालतों को अत्यधिक सावधानी बरतने की सलाह दी है। कोर्ट ने न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किया है और कहा कि इस प्रावधान के तहत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम समाज के अलावा व्यक्ति पर सामाजिक कलंक लगाता है।