BALOD. बालोद के जिस घर से कभी समाज का मार्गदर्शन करने वाले 7 जैन संत और साध्वी निकले, उसी से अब एक बेटी डॉक्टर बनी है। धर्म के ओर झुकाव रखने वाले इस परिवार के एक सदस्य की डॉक्टर बनने की कहानी भी बड़ी रोचक है। बेटी ईशा के डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करके वापस लौटने पर प्रेस क्लब द्वारा सम्मान किया गया।
बालोद में ढेलड़िया परिवार एक ऐसा परिवार है जो अब तक समाज का मार्गदर्शन करने वाले संत और साध्वियां देता रहा है। धर्म के प्रति समर्पित इस परिवार से अब तक सात सदस्य जैन संत और साध्वी बन चुके हैं। परिवार की दादी और नाना ने इच्छा जताई कि अब परिवार का कोई सदस्य ऐसा भी हो जो लोगों को स्वस्थ रखने का भी काम करे। इसके बाद सुभाष व इंदू जैन की बेटी ईशा ने मेडिकल की पढ़ाई शुरू की और वे डॉक्टर की डिग्री हासिल कर बालोद लौट आईं।
बालोद पहुंचने पर ईशा का प्रेस क्लब ने अभिनंदन किया। इस दौरान ईशा ने मेडिकल के क्षेत्र में जाने वाले बच्चों के लिए उपयोगी बातें बताईं। ईशा जैन का कहना था कि मेडिकल की पढ़ाई कठिन जरूर है पर उतनी भी नहीं जितना लोग कहते हैं या सोचते हैं।
दरअसल मन में यदि इच्छा शक्ति है और उत्साह है तो इस क्षेत्र में भविष्य के बहुत से रास्ते खुलते हैं। मेडिकल में आने के बाद एमबीबीएस के अलावा और भी कई क्षेत्र हैं जहां पढ़ाई कर बेहतर भविष्य का निर्माण किया जा सकता है।
रायपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर लौटी ईशा जैन ने बताया कि नवमीं, दसवीं में पढ़ाई के मामले में वह बहुत सामान्य थी, 11वीं और 12 वीं में मेहनत की और फिर कोटा राजस्थान में नीट की तैयारी की। लगन से तैयारी करने के बाद पहली बार में ही उनको नीट में सफलता मिली। 2019 में सलेक्शन के बाद उन्होंने बिना किसी अवरोध के एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की।
मम्मी पापा और डॉक्टर प्रदीप जैन रहे प्रेरणा स्रोत
डॉक्टर ईशा जैन ने बताया कि इस क्षेत्र में आने के लिए मम्मी पापा और डॉक्टर प्रदीप जैन बालोद विशेष रूप से प्रेरणा स्रोत रहे। शुरू से ही मुझे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाया, 12वीं के बाद मुझे मेडिकल कॉलेज में जाने के लिए मम्मी पापा ने ही प्रेरित किया।
मेरे मन में आत्मविश्वास जगाया और आज मुझे जो सफलता मिली है वह उन्हीं की बदौलत है। बचपन से ही बालोद के डॉक्टर प्रदीप जैन के बारे में सुनती थी तो मन में भी उन्ही की तरह डॉक्टर बनने की इच्छा जरूर थी।
मेडिकल की पढ़ाई के लिए अंग्रेजी माध्यम होना जरूरी नहीं
ईशा जैन का कहना है कि मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के लिए इंग्लिश मीडियम का होना जरूरी नहीं है। हिंदी मीडियम के बच्चे भी बहुत अच्छे से या कोर्स पूरा कर लेते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी कई फ्रेंड हिंदी मीडियम से हैं जो हमसे भी ज्यादा अंक ले आते हैं। इस क्षेत्र में आने वाले छात्रों को प्रेरित करते हुए उनका कहना था कि हिंदी मीडियम हो या अंग्रेजी मीडियम कोई भी फर्क नहीं पड़ता। बस मन में आत्मविश्वास रखें और आगे बढ़ें।
महिला से संबंधित रोगों को लेकर करेंगी पीजी
डॉक्टर ईशा जैन का कहना है कि हमारे देश में वैसे भी डॉक्टरों की कमी है। उनमें महिला रोग विशेषज्ञों की बहुत कमी है। इसलिए उनकी इच्छा है कि महिला से संबंधित रोगों के विषय का चयन कर वह आगे पीजी करेंगी। मेरी यह भी इच्छा है कि मेरी पहली पोस्टिंग बालोद में हो। मैं बालोद में ही सेवा देना चाहती है।