BILASPUR.छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में निचली अदालत के फैसले को बदल दिया है। निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को रिहाई का आदेश दिया है। साथ ही डिवीजन बेंच ने निचली अदालतों को हिदायत भी दी है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित किसी मामले में अदालत को संदेह को कानूनी सबूत की जगह लेने के खतरे से बचने के लिए सतर्क रहना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि भावनात्मक विचारों से प्रभावित होने के खतरे से बचने के लिए सतर्क रहना होगा। चाहे वे कितने भी मजबत क्यों न हो जाए। अपराध को पूरी तरह से साबित किया जाना चाहिए और आरोपित को अपराध से जोड़ने के लिए उन परिस्थितियों को निर्णायक प्रकृति का होना चाहिए।
बता दें, अखिलेश विश्वकर्ता, रमेश देवांगन, रमेश विश्वकर्मा, उषा विश्वकर्मा ग्राम चोरका कछार अंबिकापुर, जिला सरगुजा ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(2) के तहत अपीलकर्ताओं ने पंचम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा 20 जनवरी 2020 को पारित निर्णय के खिलाफ अपने अधिवक्ता के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सनवाई के बाद निचली अदालत ने अखिलेश विश्वकर्मा और रमेश देवांगन को दोषी ठहराते हुए भादवि की धारा 302 34 के तहत आजीवन कारावास एवं एक-एक हजार रूपये जुर्माना व जुर्माना न देने पर छह-छह महीने अतिरिक्त सजा भगतने का निर्देश दिया। अदालत ने भादवि की धारा 201 34 के तहत तीन-तीन साल की सजा और एक-एक हजार रूपये का जुर्माना व जुर्माना नहीं भरने पर एक-एक महीने की अतिरिक्त जा का निर्देश दिया। कोर्ट ने रमेश विश्वकर्मा व उषा विश्वकर्मा को आईपीसी की धारा 201-4 के तहत दोषी ठहराते हुए तीन-तीन साल अतिरिक्त और एक-एक हजार रूपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई।
कर्जदारों को माना हत्या का आरोपी
मृतक करमदेव विश्वकर्मा का शव 30 अक्टूबर 2016 को कवलपारा नामक स्थान पर पाया गया था। रिपोर्ट दर्ज कराने वाले गौरीशंकर विश्वकर्मा ने बताया कि उसके चाचा 29 अक्टूबर 2016 को अपने बकाया ऋण की वसूली के लिए गए थे और वापस नहीं लौंटे। इसके बाद शव का पोस्टमार्टम किया गया। जिसमें बताया गया कि हत्या की गई थी और आरोपित व्यक्तियों को पकड़ लिया गया, क्योंकि उनके बीच पैसे को लेकर विवाद था। आरोप यह था कि मृतक ने आरोपितों को पैसे उधार दिए थे और वह उसे वापस मांग रहा था। आरोपितों ने एक योजना बनाई और मृतक को एक विशेष स्थान पर बुलाया और शराब पिलाई। इसके बाद मफलर से और पे टपर पेचकस से हमला कर हत्या कर दी।
महत्वपूर्ण फैसला है हाईकोर्ट के डिवीजन बैंच का
मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस राधा किशन अग्रवाल के डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि इस मामले के तथ्यों में उपरोक्त सिद्धांतों को लागू करते हुए हमारा मानना है कि अभियोन पक्ष अखिलेश के अपराध को साबित करने में विफल रहा है। डिवीजन बेंच ने कहा कि अखिलेश और रमेश देवांगन ने उचित संदेह से परे और अभियोजन पक्ष के मामले ने रिकार्ड पर अपने स्वयं के साक्ष्य द्वारा सिद्धांत को नकार दिया है। इसलिए भादवि की धारा 302-34 और 201-34 के तहत उनकी दोष सिद्धि को रद किया जाना चाहिए।
रमेश उर्फ गुड्डू विश्वकर्मा और उषा विश्वकर्मा के संबंध में भी मुख्य सामग्री साबित नहीं हुई है। क्योंकि रिकार्ड पर यह दिखने के लिए कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने सबूत छिपाने की कोशिश की थी। भादवि की धारा 201-34 के तहत दोष सिद्धि की गारंटी है और इसे रद भी किया जाना चाहिए। डिवीजन बेंच ने फैसले को रद्द कर याचिकाकर्ताओं को बरी कर दिया।