BILASPUR. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पद्मश्री उषा बारले की मुलाकात के बाद उनकी राजनीति में आने की चर्चा शुरू हो गई थी। चुनाव लड़ने की अटकलें भी तेज हो गई थी। इस बीच, उषा बारले का बड़ा बयान आया है। उन्होंने कहा कि अभी हर जगह मेरा सम्मान है, जिस दिन टिकट ले लूंगी, उस दिन जहां सम्मान मिलता है, जो लोग हमें बुलाते हैं। वहीं मुझे जाकर वोट की भीख मांगी पड़ेगी। अगर विधायक बन गई। पैसे तो कामऊंगी, पर पैसा मैं नहीं खा पाऊंगी, क्योंकि खाने वाला कोई दूसरा तैयार हो जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर सरकार को बनाना है तो राज्यपाल व राष्ट्रपति बना दे, जिससे मान-सम्मान बना रहेगा। दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी यूनिवर्सिटी के 12वें स्थापना दिवस के प्रथम दिन (24 जून) के कार्यक्रम की मुख्य अतिथि भिलाई निवासी पद्मश्री उषा बारले थीं। उन्होंने यहां पंडवानी की प्रस्तुति दी। इस दौरान उन्होंने कहा कि 22 मार्च 2023 को पद्मश्री से मुझे नवाजा गया। उस दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने मेरे साथ फोटो खिंचाई थी और कहा था कि जब भी छत्तीसगढ़ आऊंगा, तुम्हारे यहां आऊंगा और 22 जून 2023 को वे आए। उन्होंने आते ही कहा कि तुम्हारा कर्ज उतार दिया।
पिता नहीं चाहते थे कि बेटी कलाकार बने, इसलिए कुएं में फेंक दिया
उषा बारले ने बताया कि उनके पिता खान सिंह जांगड़े नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी कलाकार बने। वो खुद नाचने-गाने वाले कलाकार थे। वो कहते थे की एक कलाकार का जीवन बहुत संघर्ष और गरीबी वाला होता है। उषा लड़की है कहां जाएगी, कैसे संघर्ष करेगी। जब उषा ने 7 साल की उम्र में एक स्कूल के कार्यक्रम में अपना पहला परफार्मेंस दिया तो उसे देखकर उनके पिता काफी रोए। उन्होंने बेटी को मना किया। उषा गीत गाने की जिद करने लगी, तो उन्होंने उसे कुएं में फेंक दिया। मोहल्ले वालों और उनकी मां धनमत बाई ने उन्हें कुएं से बाहर निकाला और पिता को समझाया। इसके बाद उन्होंने बेटी को आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया और अपनी गलती के लिए खेद भी व्यक्त किया।
35 साल से गा रही हैं पंडवानी, कई पुरस्कार भी मिल चुका
उषा बारले को 45 साल पंडवानी गाने के बाद पद्मश्री पुरस्कार मिला। अब तक वो 12 से ज्यादा देशों में अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं। पद्मश्री के साथ ही पंडवानी के लिए उन्हें छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से गुरु घासीदास सामाजिक चेतना पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही उन्हें भिलाई स्टील प्लांट प्रबंधन ने दाऊ महासिंह चंद्राकर सम्मान से सम्मानित किया है। गिरोधपुरी तपोभूमि में भी वे छह बार स्वर्ण पदक से सम्मानित की जा चुकी हैं।