NEW DELHI. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए नफरत फैलाने वाले भाषणों का मूलतः परित्याग करना एक मूलभूत आवश्यकता है. हेट स्पीच के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने यह टिप्पणी की. एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता निजाम पाशा ने न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष महाराष्ट्र में कई रैलियों में दिए गए घृणास्पद भाषणों के संबंध में समाचारों का हवाला दिया था.
पाशा ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि उन्होंने समाचार रिपोर्टों को संलग्न किया है और इसी आधार पर कार्रवाई की मांग की है. हालांकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समाचार रिपोर्टों के आधार पर याचिका दायर करने पर आपत्ति जताई. मेहता ने खंडपीठ में शामिल न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना के समक्ष तर्क दिया कि पाशा जिस जानकारी का उल्लेख कर रहे हैं वह केवल महाराष्ट्र से संबंधित है. साथ ही याचिकाकर्ता केरल से है. उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता मजिस्ट्रेट की अदालत से घृणा अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए सीआरपीसी के तहत सहारा लेने की मांग कर सकता है. इसके बजाय उन्होंने शीर्ष अदालत के समक्ष अवमानना याचिका दायर की है, जो समाचार लेखों पर आधारित है.
पीठ ने कहा कि जब उसने आदेश पारित किया, तो उसे देश में मौजूदा परिस्थितियों की जानकारी थी. हम समझते हैं कि क्या हो रहा है, इस तथ्य को गलत नहीं समझा जाना चाहिए कि हम चुप हैं. इस पर मेहता ने कहा कि यदि हम वास्तव में इस मुद्दे के बारे में गंभीर हैं तो कृपया याचिकाकर्ता को निर्देशित करें कि वह सभी धर्मो में नफरत फैलाने वाले भाषणों को एकत्र कर समान कार्रवाई के लिए अदालत के समक्ष रखे. यह चयनात्मक नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत को वास्तविकता का पता लगाने की जरूरत है.
शीर्ष अदालत ने तब मौखिक रूप से कहा कि सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए अभद्र भाषा को त्यागना मूलभूत आवश्यकता है, जिससे मेहता सहमत दिखे. इसके साथ ही पीठ ने मेहता से पूछा कि प्राथमिकी दर्ज करने के बाद क्या कार्रवाई की गई है और केवल एफआईआर दर्ज करने से अभद्र भाषा की समस्या का समाधान नहीं होने वाला है. मेहता ने बताया कि नफरत भरे भाषणों के संबंध में 18 प्राथमिकी दर्ज की गई हैं. शीर्ष अदालत बुधवार को भी इस मामले की सुनवाई जारी रखेगी.
सुनवाई के दौरान मेहता ने केरल में अभद्र भाषा रैलियों पर जोर दिया और सुझाव दिया कि अदालत याचिकाकर्ता से नफरत फैलाने वाले भाषणों के उन उदाहरणों को अपने संज्ञान में लाने के लिए कह सकती है और याचिकाकर्ता से यह कहते हुए सवाल कर सकती है कि देश के बाकी हिस्सों में पूर्ण शांति है और वहां कहीं और अभद्र भाषा नहीं है क्या. गौरतलब है कि पिछले साल अक्टूबर में शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा था कि संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में देखता है. इसके साथ ही दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को अभद्र भाषा के मामलों पर सख्त कार्रवाई करने और शिकायत की प्रतीक्षा किए बिना दोषियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने का निर्देश दिया था.