NEW DELHI. कांग्रेस नेता और वायनाड के सांसद राहुल गांधी को गुरुवार 23 मार्च को गुजरात में सूरत की जिला अदालत ने ‘मोदी सरनेम’ के बारे में उनकी टिप्पणी पर मानहानि मामले में दोषी ठहराया. अदालत ने इस मामले में राहुल गांधी को दो साल की जेल की सजा सुनाई. हालांकि राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत दोषी ठहराने वाले मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा की अदालत ने उन्हें जमानत भी तुरंत दे दी. साथ ही उच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति देते हुए 30 दिनों के लिए सजा को निलंबित भी कर दिया .इस दौरान राहुल गांधी स्थायी जमानत की अपील भी कर सकते हैं. गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक के कोलार में एक प्रचार रैली के दौरान राहुल गांधी ने कहा था, ‘नीरव मोदी, ललित मोदी और पीएम मोदी के नाम में कॉमन क्या है? कैसे सभी चोरों का उपनाम मोदी है?’ राहुल गांधी के इस बयान के खिलाफ भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. पूर्णेश मोदी भूपेंद्र पटेल सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री थे और फिलहाल वह सूरत पश्चिम विधानसभा से विधायक हैं. अदालत में फैसला आने से पहले कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारी गुरुवार को राहुल गांधी के समर्थन में शक्ति प्रदर्शन करने सूरत में इकट्ठे हुए थे.
राहुल गांधी के वकील किरीट पानवाला ने कहा कि सूरत जिला सत्र अदालत ने पिछले सप्ताह दोनों पक्षों की अंतिम दलीलें सुन फैसला सुरक्षित रख लिया था. राहुल गांधी इस मामले में अपना बयान दर्ज कराने के लिए आखिरी बार अक्टूबर 2021 में सूरत की अदालत में पेश हुए थे. गुजरात उच्च न्यायालय ने मार्च 2022 में कार्यवाही पर रोक लगा दी थी. खासकर जब पूर्णेश मोदी ने मुख्य रूप से पर्याप्त साक्ष्य की कमी के आधार पर अदालती कार्यवाही पर रोक लगाने की याचिका दायर की थी. इसके बाद पूर्णेश मोदी का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील हर्षित टोलिया ने कहा था, ‘अब अदालत के रिकॉर्ड में पर्याप्त सबूत आने के बाद हमने याचिका वापस ले ली है.’ उन्होंने कहा कि सीडी और एक पेन ड्राइव में राहुल गांधी के विवादित बयान से जुड़ी कथित सामग्री है. राहुल गांधी की व्यक्तिगत उपस्थिति की मांग करने वाली शिकायतकर्ता की याचिका पर उच्च न्यायालय द्वारा कार्यवाही पर लगाई गई रोक को हटाने के बाद पिछले महीने अंतिम दलीलें फिर से शुरू हुईं. इस दौरान राहुल गांधी के वकील ने पहले तर्क दिया था कि अदालती कार्यवाही शुरू से ही त्रुटिपूर्ण थी, क्योंकि सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 202 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था. सीआरपीसी का यह अनुभाग जारी प्रक्रिया के स्थगन से संबंधित है. वकील ने यह भी तर्क दिया कि पूर्णेश मोदी के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले में शिकायतकर्ता होना चाहिए था, क्योंकि वह राहुल गांधी के भाषण में मुख्य निशाने पर थे. हालांकि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का मामला दर्ज किया गया.
किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हुई क्षति से संबंधित है मानहानि का मुकदमा. भारत में मानहानि का केस दीवानी और आपराधिक दोनों ही हो सकता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसी की मान-प्रतिष्ठा को निशाना बना आरोपी किस उद्देश्य को हासिल करना चाहता है. दीवानी मामले में अदालत गलती को मुआवजे के निवारण के रूप में देखती है, जबकि एक आपराधिक कानून इस तरह का गलत काम करने वाले को दंडित करना चाहता है. साथ ही दोषी शख्स को जेल की सजा के साथ दूसरों को भी ऐसा कार्य नहीं करने का संदेश देता है. मानहानि के आपराधिक मामले को उचित संदेह से परे स्थापित करना होता है, लेकिन एक दीवानी मानहानि के मुकदमे में संभावनाओं के आधार पर भी हर्जाना दिया जा सकता है. आईपीसी की धारा 499 परिभाषित करती है कि आपराधिक मानहानि की मात्रा क्या है. बाद के प्रावधान इसकी सजा को परिभाषित करते हैं. धारा 499 में विस्तार से बताया गया है कि शब्दों क्रमशः बोले गए या पढ़ने के इरादे से, संकेतों के माध्यम से और दृश्य प्रस्तुतियों के माध्यम से भी मानहानि कैसे हो सकती है. किसी व्य़क्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे सेउसके बारे में प्रकाशित या बोल कर या इस ज्ञान-विश्वास के कारण कि लांछन संबंधित शख्स की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाएगा इस श्रेणी में आता है.आपराधिक मानहानि का दोषी पाए जाने पर धारा 500 में जुर्माने के साथ या बिना जुर्माने के दो साल तक की कैद का प्रावधान है.
एक अपराध के लिए दोषी ठहराए गए सांसद की अयोग्यता दो मामलों में हो सकती है. सबसे पहले यदि वह अपराध जिसके लिए उसे दोषी ठहराया गया है, जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(1) में सूचीबद्ध है. इसमें धारा 153ए (धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने का अपराध) या धारा 171ई (रिश्वतखोरी का अपराध) जैसे अपराध शामिल हैं या धारा 171एफ (चुनाव में अनुचित प्रभाव या प्रतिरूपण का अपराध) और कुछ अन्य. दूसरे, यदि सांसद को किसी अन्य अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है, लेकिन दो साल या उससे अधिक की सजा सुनाई जाती है. आरपीए की धारा 8(3) में कहा गया है कि अगर किसी सांसद को दोषी ठहराया जाता है और कम से कम 2 साल की सजा सुनाई जाती है तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है. हालांकि धारा में यह भी कहा गया है कि दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्यता केवल तीन महीने बीत जाने के बाद भावी होती है. उस अवधि के भीतर राहुल गांधी उच्च न्यायालय के समक्ष सजा के खिलाफ अपील दायर कर सकते हैं.