
BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राजभवन सचिवालय को जारी नोटिस पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही नोटिस को वापस ले लिया है। इस मामले में गुरुवार को राजभवन सचिवालय ने एक आवेदन पेश कर नोटिस की वैधानिकता को चुनौती दी थी। इसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को हाईकोर्ट द्वारा किसी मामले में पक्षकार नहीं बनाया जा सकता और न ही नोटिस जारी की जा सकती है. मामले की सुनवाई गुरुवार को जस्टिस रजनी दुबे के सिंगल बेंच में हुई थी। दोनों पक्षों की पैरवी के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब शुक्रवार को जस्टिस रजनी दुबे ने अपना फैसला सुनाया है और सिंगल बेंच ने पूर्व में राजभवन सचिवालय को जारी नोटिस पर रोक लगाई है.

आपको बता दें कि राज्यपाल सचिवालय ने एक आवेदन पेश कर हाईकोर्ट के नोटिस को चुनौती दी थी. इसमें कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत किसी भी प्रकरण में राष्ट्रपति या राज्यपाल को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता. गुरुवार को इस मामले में अंतरिम राहत पर बहस के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. प्रकरण में हाईकोर्ट के नोटिस पर रोक लगाने की मांग की गई.

ये है मामला
आरक्षण विधेयक बिल को राजभवन में रोकने को लेकर राज्य शासन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. इसमें कहा गया है कि विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल सिर्फ सहमति या असमति दे सकते हैं. वहीं बिना किसी वजह के बिल को इस तरह से लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता. राज्यपाल अपने संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हैं. आपको बता दें कि राज्य सरकार ने दो महीने पहले विधानसभा के विशेष सत्र में राज्य में विभिन्न वर्गों के आरक्षण को बढ़ा दिया था.

इसमें छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए 32 प्रतिशत, ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत, अनुसूचित जाति के लिए 13 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए चार प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है. इस विधेयक को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था. राज्यपाल अनुसूईया उइके ने इसे मंजूरी देने के बजाय इसे अपने पास रख लिया है. इसे लेकर अधिवक्ता हिमांक सलूजा व राज्य शासन ने याचिका लगाई थी. इसमें आरक्षण विधेयक को राज्यपाल द्वारा रोकने को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. इसकी अभी सुनवाई लंबित है.




































