PATNA. बिहार में नीतीश कुमार की सरकार भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी जी. कृष्णया की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन सहित राज्य की विभिन्न जेलों में 14 वर्ष से अधिक समय से बंद 27 अन्य कैदियों को रिहा करने वाली है. इसे लेकर नीतीश कुमार विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष के निशाने पर आ गए हैं. भाजपा जहां आनंद मोहन बहाना बनाकर सरकार मुस्लिम यादव (माई) समीकरण के दुर्दांत अपराधियों पर मेहरबान होने का आरोप लगा रही है, वहीं सरकार में शामिल भाकपा (माले) ने सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया है.
इस बीच दशकों पहले बिहार में तैनाती के दौरान मारे गए दलित आईएएस अधिकारी जी. कृष्णया की विधवा जी. उमा कृष्णया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की रिहाई रोकने का अनुरोध किया है, जिन्हें नौकरशाह की लिंचिंग के लिए दोषी ठहराया गया था. उमा कृष्णया ने कहा कि पीएम मोदी को हस्तक्षेप करना चाहिए और नीतीश कुमार को अपना फैसला वापस लेना चाहिए. यह एक बुरी मिसाल कायम करेगा और पूरे समाज के लिए इसके गंभीर नतीजे होंगे. उन्होंने कहा, मेरे पति एक आईएएस अधिकारी थे और यह सुनिश्चित करना केंद्र की जिम्मेदारी है कि न्याय हो. उन्होंने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार राजपूतों के वोट और दोबारा सरकार बनाने के लिए उनके पति के हत्यारे को रिहा कर रहे हैं.
सेंट्रल आईएएस एसोसिएशन ने भी गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी.कृष्णया की नृशंस हत्या के दोषी आनंद मोहन सिंह को रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले पर गहरी निराशा जताई. नई दिल्ली स्थित एसोसिएशन ने एक बयान में कहा कि ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या के आरोप में दोषी को कम जघन्य श्रेणी में पुनर्वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है. एक मौजूदा वर्गीकरण में संशोधन से कर्तव्य पथ पर एक लोक सेवक के सजायाफ्ता हत्यारे को रिहा कर दिया गया न्याय से इनकार करने के समान है. बयान में कहा गया है, हम बिहार की राज्य सरकार से अपने फैसले पर जल्द से जल्द पुनर्विचार करने का पुरजोर अनुरोध करते हैं.
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि राज्य सरकार ने पूर्व सांसद आनंद मोहन के बहाने अन्य 26 ऐसे दुर्दांत अपराधियों को भी रिहा करने का फैसला किया, जो एम-वाई समीकरण में फिट बैठते हैं और जिनके बाहुबल का दुरुपयोग चुनावों में किया जा सकता है. मोदी ने कहा कि गंभीर मामलों में दोषसिद्ध अपराधियों की रिहाई का फैसला असंवैधानिक और अनावश्यक है. उन्होंने कहा कि 2016 में नीतीश सरकार ने ही जेल मैन्युअल में संशोधन कर दुष्कर्म, आतंकी घटना में हत्या, दुष्कर्म के दौरान हत्या और ड्यूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारी की हत्या को ऐसे जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा था, जिसमें कोई छूट या नरमी नहीं दी जाएगी.
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार जवाब दें कि अब किस आधार पर सरकार अपने ही संशोधित कानून को शिथिल कर रही है? उन्होंने कहा कि जी कृष्णया की हत्या और आनंद मोहन के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज होने के समय लालू प्रसाद ने पूर्व सांसद की कोई मदद नहीं की थी. ट्रायल शुरू होने पर यही ठंडा रवैया नीतीश कुमार का रहा. इधर, भाकपा (माले) ने कहा कि 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके बंदियों की रिहाई के मामले में सरकार का रवैया भेदभावपूर्ण है. भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने सरकार द्वारा 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके 27 बंदियों की रिहाई में बहुचर्चित भदासी (अरवल) कांड के शेष बचे 6 बंदियों को रिहा नहीं किए जाने पर नाराजगी जताई.
उन्होंने कहा कि सरकार आखिर टाडाबंदियों की रिहाई पर चुप क्यों हैं, जबकि शेष बचे सभी 6 टाडा बंदी दलित-अतिपिछड़े व पिछड़े समुदाय के हैं और जिन्होंने कुल मिलाकर 22 साल की सजा काट ली है. यदि परिहार के साल भी जोड़ लिए जाए तो यह अवधि 30 साल से अधिक हो जाती है. सबके सब बूढ़े हो चुके हैं और गंभीर रूप से बीमार हैं. उन्होंने कहा कि सरकार के इस भेदभाव नीति के खिलाफ आगामी 28 अप्रैल को भाकपा-माले के सभी विधायक पटना में एक दिन का सांकेतिक धरना देंगे और धरना के माध्यम से शेष बचे 6 टाडाबंदियों की रिहाई की मांग उठायेंगे.