BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महिला की भरण-पोषण याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें महिला ने पति से विवाह के 22 साल बाद भरण-पोषण की मांग की थी। कोर्ट ने साफ कहा कि इतने लंबे अंतराल के बाद भरण-पोषण की मांग न्यायसंगत नहीं है और अब महिला इसके लिए हकदार नहीं मानी जा सकती।


बता दें, यह मामला दुर्ग जिले की रहने वाली एक महिला द्वारा दायर किया गया था। उन्होंने फैमिली कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपने पति से भरण-पोषण की राशि की मांग की थी। लेकिन फैमिली कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था, जिस फैसले को महिला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि विवाह के 22 वर्षों बाद अचानक भरण-पोषण की मांग करना तार्किक नहीं है, विशेषकर जब इतने लंबे समय तक महिला ने कोई दावा नहीं किया और स्वतंत्र रूप से जीवन व्यतीत कर रही थीं।

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि यदि महिला इस बीच आर्थिक या सामाजिक रूप से निर्भर नहीं थी और अब केवल कानूनी अधिकार के नाम पर भरण-पोषण की मांग कर रही है, तो यह न्यायोचित नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा भरण-पोषण की मांग समय पर और उचित परिस्थितियों में ही स्वीकार्य हो सकती है। 22 वर्षों की देरी यह दर्शाती है कि याचिकाकर्ता अब भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं रही।

पटवारी से हुई थी बर्खास्त
महिला ने कोर्ट को बताया कि वह पहले सरकारी नौकरी में थी लेकिन अब वह बेरोजगार है। वर्ष 2002 में पति और सास ने उसे और बेटे को घर से निकाल दिया था। वर्ष 2007 में उसे पटवारी की नौकरी मिली थी। लेकिन बाद में वह एक आपराधिक मामले में फंस गई और वर्ष 2019 में उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इसी वजह से उसे भरण पोषण की जरूरत है। इतना ही नहीं उसने कोर्ट को यह तर्क दिया कि उसे उसके पति ने घर से निकाला था इसलिए वह भरण पोषण की हकदार है।
महिला ने कोर्ट को बताया कि वह पहले सरकारी नौकरी में थी लेकिन अब वह बेरोजगार है। वर्ष 2002 में पति और सास ने उसे और बेटे को घर से निकाल दिया था। वर्ष 2007 में उसे पटवारी की नौकरी मिली थी। लेकिन बाद में वह एक आपराधिक मामले में फंस गई और वर्ष 2019 में उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इसी वजह से उसे भरण पोषण की जरूरत है। इतना ही नहीं उसने कोर्ट को यह तर्क दिया कि उसे उसके पति ने घर से निकाला था इसलिए वह भरण पोषण की हकदार है।