ATUL MALAVIYA. मात्र एक महीने में निवेशकों की पूंजी में 36.50 लाख करोड़ रुपये जुड़ जाना कोई हंसी-खेल नहीं। आपको ध्यान दिला दूं कि ये रकम हमारे देश में उपलब्ध कुल करेंसी का लगभग दुगुना होती है। स्टॉक मार्केट्स में दो तरह के खिलाड़ी होते हैं : एक तेजड़िया अर्थात बुल और दूसरा मंदड़िया अर्थात बेयर। मंदी मात्र कुछ प्रतिशत लोगों को लाभ पहुंचाती है और तेज़ी अधिकांश निवेशकों को।
जहाँ फ़ेडरल रिज़र्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल के 2024 में ब्याज दरों में नरमी के संकेत ने अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया भर के बाज़ारों को नई ऊंचाइयों पर पहुँचा दिया है। वहीं भाजपा की तीन राज्यों में प्रचंड जीत ने तो जैसे इस हवन में घी डालने का काम करते हुए भारतीय निवेशकों को आश्चर्यजनक रूप से मालामाल कर दिया। आइये, इस चमत्कार के कारणों को जानने का प्रयास करते हैं।
भारत एक ऐसा देश रहा है, जिसमें सभी जानते हैं कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष टैक्स चोरी चरमसीमा तक होती आयी है। यानी अर्थव्यवस्था या राजकोष में उनका योगदान आधे से भी कम रहा है। विगत कुछ वर्षों में GST या इनकम टैक्स कलेक्शन के जो हतप्रभ करने वाले रिकॉर्डतोड़ आंकड़े आ रहे हैं, ये सिर्फ सिस्टम में बदलाव का परिणाम है।
आने वाले समय में पैनकार्ड, आधार, और स्त्रोत से निकले माल पर इतना सुदृढ़ और कड़ा नियंत्रण होने वाला है कि टैक्स चोरी नामुमकिन बात हो जायेगी। जिस दिन ऐसा हो गया, भारतीय अर्थव्यवस्था, जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय यूरोप और अमेरिका को टक्कर देने लगेगी। भारत फिर से “सोने की चिड़िया” बन जायेगा।
जिन लोगों ने अर्थशास्त्र का थोड़ा भी अध्ययन किया होगा वे महान अर्थशास्त्री “प्रोफ़ेसर राग्नर नर्क्स” के “विशियस सर्किल ऑफ़ पोवर्टी” अर्थात “गरीबी के अभेद्य चक्र” और पैसा कमाने के वेदवाक्य “money begets money” अर्थात “पैसा ही पैसे को खींचता है”, से अवश्य वाकिफ होंगे। पूंजी की कमी के अलावा भारत जैसे देश के आर्थिक रूप से अविकसित रहने का और दूसरा कोई कारण है ही नहीं। जैसे ही हमारे लोग भारत से बाहर निकलते हैं, यहाँ के लोगों की बुद्धिमत्ता, परिश्रम, लीडरशिप क्वालिटी और लगन का पूरी दुनिया लोहा मानती है। फिर वही लोग भारत में क्यों उन मानदंडों को तय नहीं कर पाते? कारण है, भ्रष्ट नेता बाबू ठेकेदार सिस्टम, अर्थव्यवस्था और पूंजी बाज़ार का अपरिपक्व होना। भारत में पूंजी जुटाने के फैमिली बिज़नेस, इधर उधर से पैसा लेने या बैंक लोन जैसे परंपरागत तरीके न तो पर्याप्त हैं और न ही फायदेमंद।
हालाँकि विगत कुछ दशकों में भारत में भी कंपनियां अधिकाधिक IPOs या FPOs लाकर धन जुटा रही हैं। अभी भी इस दिशा में हमें कई गुना आगे बढ़ने की जरूरत है। अनेक लोग कहते हैं कि ठीक है हम पब्लिक इश्यूज़ में तो निवेश करने को तैयार है लेकिन सेकेंडरी मार्केट्स में खरीद बिक्री नहीं करेंगे। वे इसे जुआ या सट्टा जैसा गलत काम मानते हैं। वे बाज़ारों की “वोलाटिलिटी” या भारी उतार-चढ़ाव और फायदे नुकसान की संभावना को भी ठीक नहीं मानते| उसके बाद भी उनके मन में रातोंरात अमीर बनने का लालच बना रहता है।
मेरा मानना है कि ऐसे लोग जंगल के उस शेर की तरह हैं जो गुफा में आराम से पसरे हुए कामना करता है कि शिकार के लिए बाहर न निकलना पड़े और हिरण स्वयं ही अंदर चलकर उनके जबड़ों में आ जाये। इकोनॉमिक्स का सीधा सा फंडा है, जहाँ जोखिम है, वहीं लाभ होगा और जहाँ लाभ की संभावना है वहाँ जोखिम तो होगा ही होगा। इसलिए इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि सेकेंडरी मार्केट्स अर्थात शेयर्स की ट्रेडिंग में लाभ की संभावना ही प्राइमरी मार्केट्स को चलाती है, पब्लिक इश्यूज को सफल बनाती है।
कबीरदास का प्रसिद्ध दोहा है : “जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ; मैं बपुरन बूढ़न डरी, रही किनारे बैठ”। तात्पर्य, समुद्र में से रत्न एक जोखिम लेने वाला गोताखोर ही निकाल सकता है, किनारे पर बैठकर डूबने से डरने वाला इंसान नहीं।
लेख को अधिक लंबा न करते हुए अब स्टॉक मार्केट्स के यहाँ से कहाँ? वाले प्रश्न पर आ जाते हैं। इसमें संदेह नहीं होना चाहिए कि “गुजराती माणस” नरेंद्र मोदी के आर्थिक विज़न में कहीं कोई अस्पष्टता नहीं है। मार्केट डर रहा था कि मई 2024 में मोदीजी वापिस आयेंगे या नहीं और “इंडिया या घमंडिया” गठबंधन नामक गीदड़ों का झुंड कहीं शेर का शिकार करने में सफल तो नहीं हो जायेगा?
छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा परिणामों ने मार्केट्स, निवेशकों, FPIs और पूरी दुनिया को आश्वस्त कर दिया कि 2029 तक मोदीजी को कोई हिला भी नहीं सकता और इसमें संदेह नहीं कि अगले पाँच साल भारतीय बाज़ारों के लिए स्वर्णिम काल साबित होंगे। भारत विकासशील देशों की पंक्ति से निकलकर विकसित देशों के साथ सीना ताने खड़ा होगा।
एक और महत्वपूर्ण बात, जहाँ S&P (Standard & Poor) और MSCI जैसी एजेंसियों ने अब तक दुनिया की सबसे उभरती महाशक्ति “चीन” को डाउनग्रेड कर दिया है वहीं सबसे तेज़ जीडीपी ग्रोथ वाले भारत को सर्वसम्मति से अपग्रेड किया है। आने वाले समय में चीन से तेज़ी से पैसा और भारी भरकम पूंजी निकलकर भारतीय बाज़ारों में आने वाली है। एक के बाद एक बड़े उद्योग निश्चित रूप से चीन से भारत की ओर फ्लाइट करेंगे। आप अभी से नोट करलें, मेरा पूरा विश्वास और मानना है कि सेंसेक्स अगले दो सालों में “एक लाख” का जादुई आंकड़ा पार करेगा।
सवाल ये भी है कि अब निवेश कहाँ करें? मेरे साथी स्वीकार करेंगे कि मैं उन्हें निजी रूप से पिछले दो सालों से BEL, BHEL, SBI, HAL, साउथ इंडियन बैंक, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र, IOB, IRCTC और NHPC इत्यादि जैसे अनेक शेयर्स में निवेश की सलाह देता रहा हूँ। जिन लोगों ने मेरी बात मानी उनका निवेश आज कई गुना बढ़ चुका है। कांग्रेस के शासन में जिस पब्लिक सेक्टर को करप्शन, अकर्मण्यता और अनुत्पादकता का पर्याय माना जाता था, आज उन्हीं शेयर्स की दुनिया तारीफ़ कर रही है, वे कम्पनियां भारी मुनाफ़ा कमा रही हैं।
पब्लिक सेक्टर्स के अलावा आज भी स्टॉक मार्केट्स का बेताज बादशाह माने जाने वाला रिलायंस अपने वास्तविक वैल्यूएशन से नीचे है, इसे जितनी मात्रा में चाहें, खरीद लें। पेट्रोलियम से हटकर टेलिकॉम और रिटेल में इसका लगातार बढ़ता मार्केट शेयर इसकी वैल्यू को बेतहाशा अनलॉक करने में समर्थ होगा। मेरा मानना है कि अगले ही वर्ष में रिलायंस टेलिकॉम (जिओ) और रिटेल अपनी पैरेंट कंपनियों से अलग नई पहचान बनाएंगीं, बाज़ार में लिस्टिंग करेंगीं और बिना समय गंवाये तीनों आज के रिलायंस के शेयर के बराबर होंगीं।
साथ ही, TCS, Infosys, Wipro, HCL Tech जैसी दिग्गज़ आईटी कंपनियां जैसे ही AI के क्षेत्र में दमखम दिखायेंगीं, ये दुनिया की माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों को टक्कर देंगीं। कंपनियों के वर्तमान वैल्यूएशन, सेक्टर, भविष्य की योजनायें, मैनेजमेंट और लाभप्रदता को देखकर, समझकर निवेश करें। किसी भी अच्छी कंपनी को पकड़ लें, आपका निवेश व्यर्थ नहीं जायेगा। विश्वास मानिये, यदि आप प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों तरह के स्टॉक्स में निवेश करते हैं तो आप अपनी सोने चांदी, रियल एस्टेट आदि में अनुत्पादक पड़ी पूंजी को लगाकर गरीबी के चक्र को भेदकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का पुण्यकार्य कर रहे होते हैं|
अभी तो पार्टी शुरू हुई है….
(लेखक अफ्रीका और यूरोप में स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट रहे हैं।)