BILASPUR NEWS. सर्पदंश से एक मजदूर की मौत के बाद मुआवजा देने की सरकारी व्यवस्था किस तरह फाइलों में उलझकर दम तोड़ देती है, इसका उदाहरण बालोद-बालाघाट से जुड़ा यह मामला बन गया है। 9 साल बीत जाने के बावजूद मृतक मजदूर के परिवार को मुआवजा नहीं मिलना प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, जिस पर अब हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है। हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश के बालाघाट और छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के कलेक्टरों से पूछा है कि स्पष्ट नियम होने के बावजूद गरीब मजदूर के परिजनों को राहत क्यों नहीं दी गई।

मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के ग्राम खेरलांजी निवासी प्रशांत शिंदे वर्ष 2016 में रोज़गार की तलाश में छत्तीसगढ़ आया था। बालोद जिले के डोंडी लोहारा क्षेत्र में मजदूरी करते समय 25 अक्टूबर 2016 की रात सोते हुए उसे सांप ने काट लिया, जिससे उसकी मौत हो गई।

FIR हुई, आवेदन भी लगे… लेकिन आगे कुछ नहीं
घटना के बाद मृतक की पत्नी सुलेखा शिंदे ने बालोद थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। इसके बाद उन्होंने दो राज्यों के कलेक्टरों के समक्ष मुआवजे के लिए आवेदन दिए, लेकिन प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी।
सरकारी प्रावधानों में सर्पदंश से मृत्यु को आपदा की श्रेणी में मानते हुए मुआवजे का स्पष्ट नियम है, इसके बावजूद फाइलें वर्षों तक आगे नहीं बढ़ सकीं।

राज्य सीमा बनी राहत में सबसे बड़ी बाधा
यह मामला दो राज्यों—मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़—से जुड़ा होने के कारण वर्षों तक जिम्मेदारी तय नहीं हो सकी। नतीजा यह हुआ कि मजदूर की मौत पर किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली, और पीड़ित परिवार को सिस्टम के बीच पिसना पड़ा।

हाईकोर्ट की सख्ती, अब जवाब देना होगा
लगातार प्रयासों के बाद जब परिवार को कोई राहत नहीं मिली, तब मामला हाईकोर्ट पहुंचा। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि गरीब मजदूरों के मामलों में इस तरह की देरी संवेदनहीनता को दर्शाती है।
हाईकोर्ट ने दोनों कलेक्टरों को नोटिस जारी कर 9 साल की देरी का कारण बताने के निर्देश दिए हैं।


































