BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने तलाक से जुड़े एक अहम मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने साफ कहा कि पति को शारीरिक संबंध बनाने से रोकना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश पलटते हुए पति की तलाक अपील मंजूर कर ली और पत्नी को दो महीने के भीतर 20 लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया है।

यह मामला अंबिकापुर के 45 वर्षीय व्यक्ति का है, जिसकी शादी मई 2009 में रायपुर निवासी महिला से हुई थी। पति का आरोप था कि शादी के सिर्फ एक महीने बाद ही पत्नी मायके चली गई और वैवाहिक दायित्व निभाने से लगातार इनकार करती रही। 2013 में जब पत्नी वापस लौटी तो तब भी उसने शारीरिक संबंध बनाने पर रोक लगाई और संबंध बनाने की कोशिश करने पर आत्महत्या की धमकी तक दी। मई 2014 से वह मायके में ही रह रही है।

दूसरी ओर पत्नी ने पति के सभी आरोपों को झूठा बताते हुए कहा कि पति स्वयं योग-साधना में लीन रहते हैं और वैवाहिक संबंधों में रुचि ही नहीं रखते। उसने उत्पीड़न के आरोप भी लगाए, हालांकि बाद में वैवाहिक अधिकार बहाली के लिए दी गई उसकी अर्जी उसने वापस ले ली।

फैमिली कोर्ट ने पहले पति की तलाक याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके बाद पति ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने पाया कि दोनों पिछले 11 साल से अलग रह रहे हैं और पत्नी भी पति के साथ रहने को तैयार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि इतने लंबे समय तक अलग रहना और वैवाहिक कर्तव्यों से इंकार करना मानसिक क्रूरता की परिभाषा में आता है।

इसी आधार पर हाईकोर्ट ने पति को तलाक देने का निर्णय सुनाते हुए 20 लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता तय किया।




































