BILASPUR NEWS. रायगढ़ जिले से जुड़े एक पारिवारिक विवाद में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। पति ने कोर्ट में दलील दी कि वह बेरोजगार है जबकि उसकी पत्नी सरकारी नौकरी में है, इसलिए वह गुजारा भत्ता देने की स्थिति में नहीं है। लेकिन हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि बच्चे की पढ़ाई और परवरिश में पिता की जिम्मेदारी सबसे अहम है।
बता दें, रायगढ़ निवासी दंपती विवाद के कारण अलग रह रहे हैं। उनका एक 4 साल का बेटा है। वह रायगढ़ के कान्वेंट स्कूल में पढ़ता है। पत्नी ने रायगढ़ के फैमिली कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 127 के तहत भरण-पोषण के लिए मांग करते हुए याचिका दायर की थी। जहां पर कोर्ट ने पति को मां और बेटे को हर माह 6 हजार रुपये देने का आदेश दिया था। इस पर पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
याचिका में उसने बताया कि वह बेरोजगार है। उसके पास आय का कोई स्थायी स्त्रोत नहीं है। खास कर कोरोना काल के बाद से उसके पास कमाई का कोई जरिया नहीं बचा है। इसके साथ ही उसने कोर्ट को बताया कि उसकी पत्नी अपने पिता के स्कूल में शिक्षिका है। उसकी आमदनी भी अच्छी है। उसने कोर्ट से यह भी कहा कि पत्नी कमाती है तो आदेश को रद किया जाए।
इस पर कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना , कोर्ट ने रायगढ़ फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराया और कहा कि भले ही पत्नी कमाने वाली हो, लेकिन इससे पति अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। हाईकोर्ट ने साफ किया कि पिता को अपनी स्थिति सुधारने की कोशिश करनी चाहिए और बच्चे की देखभाल के लिए आर्थिक सहयोग देना अनिवार्य है।
कोर्ट ने की टिप्पणी
भले ही पत्नी सरकारी नौकरी में हो, पर बच्चे की शिक्षा, पालन-पोषण और मानसिक विकास की जिम्मेदारी दोनों अभिभावकों की होती है। पति बेरोजगार है, यह कोई बहाना नहीं हो सकता कि वह गुजारा भत्ता न दे।