BASTAR NEWS. छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र अब लाल आतंक से मुक्त हो रहा है। सरकार की पुनर्वास नीति और सुरक्षा बलों की सख्ती का असर ये है कि बड़ी संख्या में महिलाएं एवं पुरुष नक्सल संगठन से पिंड छुड़ाकर मुख्यधारा की ओर रुख कर रहे हैं। इन बदलते हालात में नक्सल संगठन में महिलाओं की स्थिति पर जो खुलासा हुआ, वो हैरान करने वाला है। नक्सल संगठन महिलाओं के लिए अमानवीय दंड से कम नहीं है।
आप उस स्थिति की कल्पना मात्र से स्तब्ध रह जाएंगे कि संगठन में महिलाओं को पीरिएड्स के दौरान सैनेटरी नैपकीन के रूप में मात्र आधी लुंगी मिलती है। इस आधी धोती को महिलाओं को छह महीने तक चलाना होता है। इस स्थिति में भी महिलाओं को कोई रियायत नहीं है। उन्हें पुरुषों की तरह 25 किलो वजन लेकर चलना होता है। ये सामान दैनिक उपयोग के साथ-साथ राशन, हथियार आदि का होता है। दुर्दशा का यह किस्सा तो महज उदाहरण मात्र है। नक्सल संगठन में अपने जीवन के करीब 20 साल बिता चुकी महिलाओं ने संगठन की जो हक़ीक़त बताई, वह हैरान कर करने वाली है।
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बीजापुर के थाना गंगालूर क्षेत्र की रहने वाली वनीता सोढ़ी नक्सल संगठन में कई स्तरों पर काम कर चुकी हैं और अब मुख्यधारा में आ चुकी हैं। वनीता बताती हैं कि नक्सल संगठन में दु:ख ही दु:ख है। दिन हो या रात, एक जोन से दूसरे जोन जाने के लिए पांच-पांच घंटे लगातार चढ़ना पड़ता है। इस सफर में कम से कम 25 किलो का वजन भी ढोना पड़ता है।
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महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी पीरिएड्स के दौरान होती है। महिलाओं को मात्र आधी लुंगी सैनेटरी नैपकीन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए संगठन के नेताओं द्वारा दी जाती है। इस आधी लुंगी को महिलाओं को छह महीने तक इस्तेमाल करना पड़ता है। इस स्थिति को महिलाएं और पुरुष दोनों ही बेहतर समझ सकते हैं कि आधी लुंगी छह महीने के लिए न केवल अपर्याप्त है, बल्कि महिलाओं की हाईजीन के लिए कितनी जोखिम भरी है।
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नक्सल संगठन में महिलाओं की दुर्दशा का यह एक नमूना भर है। वनीता सोढ़ी ने आगे जो बताया वो और चिंता में डालने वाला है। वनीता खुद मानती हैं कि वे महज 13-14 साल की उम्र में नक्सल संगठन में उन्हें बरगला कर भर्ती किया गया। वो मात्र छठी या सातवीं तक की ही पढ़ाई कर पाईं थीं। इसके बावजूद उन्हें संगठन में साथियों की चिकित्सा का जिम्मा सौंप दिया गया। संगठन में बड़े नेता कुछ बाहरी लोगों को बुलाकर चंद घंटे मे डाक्टर बनाकर चले जाते थे। इसके बाद वे संगठन में शामिल महिलाओं और पुरुषों का इलाज करती थीं।
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नक्सल संगठन में महिलाओं पर अत्याचार के किस्से यहीं तक सीमित नहीं है। महिलाओं के मानसिक, आर्थिक शोषण की कहानियां अंतहीन हैं। महिलाएं भले न बोलें लेकिन सुरक्षा बल जानते हैं कि नक्सल संगठन में महिलाओं का हर स्तर और हर स्वरूप में शोषण किया जाता है।