BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में बर्खास्त शिक्षक को आखिरकार न्याय मिल ही गया। लेकिन न्याय भी तब मिला है जब उसकी सेवानिवृत्ति हो गई है। बर्खास्त सहायक शिक्षक ने अपनी बर्खास्ती के बाद से ही न्याय के लिए लड़ाई लड़नी शुरू कर दी थी लगातार न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए न्याय मांगा। लेकिन अंतिम में हाईकोर्ट से न्याय मिला है कोर्ट ने सहायक शिक्षक की पक्ष में फैसला सुनाते हुए सेवानिवृत्त आयु दिनों से पिछला सभी परिणामी लाभ देने के निर्देश शिक्षा विभाग को दिया है। 16 साल बाद शिक्षक को न्याय मिला है।
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बता दें, मामला सरगुजा का है। जहां पर सहायक शिक्षक नोहर साय कुजूर को अनाधिकृत अनुपस्थिति के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। याचिकाकर्ता नोहर कुजूर की शिक्षा विभाग में सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्ति हुई थी। वे शासकीय स्कूल सुमैरपुर में पदस्थ थेे। सितंबर 2007 से अप्रैल 2008 तक स्वास्थ्यगत काराण् स्े स्कूल में उपस्थित नहीं हो सके।
इस पर जिला शिक्षा अधिकारी सरगुजा ने 2008 में अनाधिकृत अनुपस्थिति होने के आधार पर सेवा से बर्खास्त कर दिया। इसके खिलाफ उन्होंने डीपीआई के समक्ष अपील पेश की। अपील डीपीआई में फेल होने पर उन्होंने राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग को आवेदन दिया। आयोग ने अक्टूबर 2013 को डीपीआई को बहाल करने की अनुशंसा की। इसके बाद भी बहाल नहीं किए जाने पर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में सेवा याचिका पेश की।
हाईकोर्ट ने डीपीआई को आयोग के अनुशंसा पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया। इसके बावजूद उन्हें बहाल नहीं किया गया। इस पर उन्होंने 2015 में अधिवक्ता सोमकांत वर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में अपील पेश किया। अपील की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे की बेंच में हुई। 9 साल बाद याचिका में अंतिम सुनवाई उपरांत कोर्ट ने प्रकरण को अगस्त में निर्णय के लिए सुरक्षित किया था। कोर्ट ने निर्णय पारित करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता स्वास्थ्यगत कारण से कार्य में उपस्थित नहीं होने जवाब पेश किया।
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इसके पक्ष को सुना नहीं गया है। आयेाग ने याचिकाकर्ता को बहाल करने की अनुशंसा की थी इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके अलावा उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर सीसीए रूल्स का पालन नहीं किया गया। याचिकाकर्ता शासकीय सेवा में नियमित कर्मचारी रहा। उसकी सेवा ऐसे समाप्त नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत का अवलोकन किया गया। इस कारण विवादित बर्खास्तगी आदेश को निरस्त किया जाने योग्य है। याचिकाकर्ता पहले ही सेवानिवृत्त आयु प्राप्त कर चुका है। इसलिए वह बहाली का हकदार नहीं होगा लेकिन वह परिणामी लाभ का हकदार है। कोर्ट ने पिछला बकाया वेतन मामले को छोड़ देने को अनुचित ठहराया है। याचिका दाखिल करते समय याचिकाकर्ता की उम्र 54 वर्ष थी और अब तक वह वृद्ध हो चुके है करीब 63 साल आयु हो गई है। इसलिए बहाली नही परिणामी राशि को प्राप्त करने का हकदार है।