BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में इस बात पर जोर दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 364 ए के तहत सजा पाने के लिए अभियोजन को यह साबित करना आवश्यक है कि अपहरण के साथ फिरौती की मांग और जीवन की धमकी भी थी। हाईकोर्ट में यह फैसला चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत के बेंच में सुनाया गया। इस मामले में दोषी को मुक्त कर दिया गया है।
बता दें, 3 अप्रैल 2022 की एक घटना से उत्पन्न हुआ। शिकायतकर्ता भगवंता साहू ने आरोप लगाया का उनका अपहरण योगेश साहू और नरेद्र बामार्डे के द्वारा किया गया था। आरोप लगाने वाले के मुताबिक अपीलकर्ताटों ने भगवंता को वाहन दिखाने के बहाने लेकर गए और बाद में उन्हें रोक कर रखा।
यह मांग करते हुए कि उनकी पत्नी गाजी खान द्वारा बेचे गए ट्रक के बकाया पैसे को दें। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराते हुए उन्हें धारा 364 ए के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। साथ ही धारा 343 और 323 24 के तहत अतिरिक्त सजा भी दी। हाईकोर्ट ने इस फैसले को रद कर आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया।
कोर्ट ने की धारा 364ए की व्याख्या
कोर्ट ने आईपीसी की धारा 364ए की व्याख्या की। इस धारा के तहत दोषसिद्धि के लिए अभियोजन को संदेह से परे यह साबित करना होात है कि अपहरण के साथ फिरौती की मांग और जीवन की धमकी भी दी थी। हाईकोर्ट ने साक्ष्यों का बारिकी से विश्लेषण किया और अभियोजन के मामले में महत्वपूर्ण विसंगतियों पाई। कोर्ट ने देखा की अभियोजन धारा 364ए के तहत आवश्यक तत्वों को स्थापित करने में विफल रहा। विशेष रूप से उन्होंने नोट किया कि फिरौती की मांग या शिकायतकर्ता के जीवन की धमकी का कोई ठोस सबूत नहीं था।
ट्रायल कोर्ट के फैसले को किया रद
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने निर्णय देते हुए कहा अभियोजन ने संदेह से परे अपीलकर्ताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 364ए के तहत अपराध को साबित करने में विफल रहा है। ट्रायल कोर्ट में दोषी ठहराया गया जो कि बिल्कुल गलत है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल हिरासत में रखना या अपहरण करना बिना स्पष्ट फिरौती की मांग और जीवन की धमकी के धारा 364 ए के तहत दोष सिद्धि के मानदंड को पूरा नहीं करता।