BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अनुकंपा नियुक्ती के बाद मां की जिम्मेदारी नहीं उठाने के मामले में फैसला सुनाया है। मामले की गंभीरता को समझते हुए कोर्ट ने बेटे को फटकार लगाई है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच में हुई। कोर्ट ने कहा कि पिता की मौत के बाद मां की देखभाल पुत्र की नैतिक जिम्मेदारी बनती है। यह कानूनी दायित्व भी है। मां की सहमति से नौकरी मिली है। इसलिए वह जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता। कोर्ट ने बेटे की अपिल को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता मां के बैंक खाते में 10 हजार रुपये प्रतिमाह देने का आदेश बेटे को दिया है।
बता दें, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक बुजुर्ग मां की याचिका पर सुनवाई की। जानकारी के मुताबिक एसईसीएल में अनुकंपा नियुक्ति पाने के कुछ दिन बाद बेटे ने मां की देखभाल करना और खर्च देना बंद कर दिया था। परेशान मां ने हाईकोर्ट में एसईसीएल की नीति के अनुसार बेटे के वेतन से कटौती कर 20 हजार रुपये प्रतिमाह देने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।
हाईकोर्ट ने संबंधितों को नोटिस भी जारी किया। मामले में एसईसीएल ने जवाब में कहा कि नीति के अनुसार सहमति का उल्लंघन करने पर 50 प्रतिशत राशि काट कर मृतक के आश्रितों के खाते में जमा किया जा सकता है। इसके बाद हाईकोर्ट ने बुजुर्ग मां के पक्ष में फैसला सुनाया और बेटे को हर महीने राशि मां के बैंक खाते में जमा कराने के निर्देश दिए है।
कोर्ट ने बताई बेटे को जिम्मेदारी
याचिकाकर्ता मां की याचिका पर सिंगल बेंच ने याचिका को स्वीकार करते हुए पक्ष में फैसला सुनाया था। सिंगल बेंच के फैसले को बेटे ने चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में अपील पेश की थी याचिकाकर्ता बेटे ने अपने अपील में कहा कि उसे 79 हजार नहीं बल्कि 47 हजार रुपये वेतन मिलता है।
इसमें ईएमआई कट रहा है। एसईसीएल के जवाब पर पुत्र ने कहा कि मां को 5500 रुपये पेंशन मिल रही है। इसके अलावा पिता के सेवानिवृत्त देयक राशि भी उन्हें मिली है। इससे वह अपनी देखभाल कर सकती है।
कोर्ट ने फटकार लगाते हुए पुत्र को कहा कि मां की सहमति से नियुक्ति मिली है और उसकी जिम्मेदारी उठाने से आप बच नहीं सकते। 10 हजार रुपये देने की सहमति भी दी है इसलिए खर्च के लिए राशि देना ही होगा। कोर्ट ने बेटे को जमकर फटकार लगाई।