MUMBAI. भारतीय राजनीति में बयानों के अपने अलग निहितार्थ होते हैं. इस लिहाज से देखें तो महाराष्ट्र की राजनीति में पवार चाचा-भतीजे के महज 48 घंटों में आए अलग-अलग बयान नए राजनीतिक समीकरण या गठबंधन की ओर इशारा कर रहे हैं. सबसे बड़ी बात राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सर्वेसर्वा शरद पवार और फिर उनके भतीजे अजित पवार के बयानों ने कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह से आहत कर दिया है. यहां यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी से अलग होने वाली और तब एक शिवसेना के उद्धव ठाकरे की महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए महा विकास अघाड़ी गठबंधन तैयार किया गया था. इसमें एनसीपी, शिवसेना के साथ-साथ कांग्रेस भी शामिल हुईं. इसके बावजूद पवार चाचा-भतीजा ने उन मुद्दों की हवा निकाल दी है, जिसे कांग्रेस राष्ट्रीय फलक पर विपक्षी एकता का आधार बना रही थी.
कांग्रेस खासकर राहुल गांधी को आईना दिखाता पहला बयान वीर सावरकर मसले पर शरद पवार ने दिया था. राहुल गांधी ने सूरत अदालत की दोषसिद्धी और फिर सजा के मसले पर भी सावरकर को आदत के अनुरूप घसीट लिया था. एक पत्रकार द्वारा मोदी सरनेम मसले पर माफी मांग छूट जाने के प्रश्न पर राहुल गांधी ने बेहद तीखे अंदाज में कहा था, ‘मैं सावरकर नहीं गांधी हूं.’ राहुल गांधी के इस बयान पर महाराष्ट्र की राजनीति में सियापा मच गया. यहां तक कि शरद पवार को सावरकर मसले पर राहुल गांधी को नसीहत तक देनी पड़ी थी. माना जाता है कि इसके बाद ही राहुल गांधी ने सावरकर से जुड़े ट्वीट्स डिलीट कराए और भविष्य में इस विषय को नहीं उठाने का आश्वासन दिया. यही नहीं, शरद पवार ने राहुल को नसीहत देने के बाद सावरकर की शान में जमकर कसीदे भी पढ़े थे. कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए यह अपनी सहयोगी एनसीपी पार्टी की ओर से पहला बड़ा झटका था.
इसके बाद शरद पवार ने विगत दिनों अडानी के खिलाफ हिंडनबर्ग रिपोर्ट और समग्र मसले की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराए जाने की कांग्रेस की मांग पर जोरदार झटका दिया. उन्होंने न सिर्फ हिंडनबर्ग रिपोर्ट को खारिज कर दिया, बल्कि यहां तक कह डाला की जेपीसी की मांग का भी कोई मतलब नहीं है. खासकर जब सुप्रीम कोर्ट पहले ही अडानी मसले पर जांच के लिए समिति के गठन का आदेश दे चुका है. शरद पवार ने यह भी कहा कि हिंडनबर्ग के बारे में कोई कुछ नहीं जानता है. इसके बावजूद उसकी अडानी के खिलाफ रिपोर्ट और उस आधार पर संसद में जेपीसी जांच को लेकर हंगामा हद से कहीं ज्यादा खींचा गया. जाहिर है अडानी मसले खासकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट को मोदी सरकार के खिलाफ भुनाने का कांग्रेस के प्लान की इससे हवा नहीं निकल गई. यही नहीं. अडानी मसले पर विपक्षी एका बनाने की रणनीति बना रही कांग्रेस के इरादों पर भी पानी फिर गया.
रही सही कसर शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की भूरि-भूरि प्रशंसा कर पूरी कर दी. फिर चुनाव हारने पर ईवीएम का रोना रोने वाले विपक्षी दलों को भी आड़े हाथों लिया. उन्होंने सवाल तक पूछ डाला कि ईवीएम में क्या खराबी है? अजित पवार ने ईवीएम पर पूरा भरोसा जताते हुए यहां तक कह डाला कि जब लोग चुनाव हारते हैं, तो मतदाता के फैसले को स्वीकार करने के बजाय ईवीएम को दोष देते हैं. अजित पवार ने प्रधानमंत्री का जिक्र करते हुए कहा कि 2014 में चुनाव जीतने के बाद मोदी को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. हालांकि यह तथ्य है कि वह जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए और भाजपा ने उनकी वजह से कई राज्यों में चुनाव जीते. उन्होंने कहा कि उनके नेतृत्व में भाजपा ने 2019 के चुनावों में 2014 के कारनामे को दोहराया. पवार ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि 9 साल सत्ता में रहने के बाद प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाने का क्या मतलब है जब देश के सामने बेरोजगारी, महंगाई, किसानों के मुद्दे आदि जैसे बड़े मुद्दे हैं.
जाहिर है पवार चाचा-भतीजा के इन बयानों के बरअक्स महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है. यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि 2019 में अजित पवार ने चाचा शरद पवार से अलग लाइन लेते हुए बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बना ली थी और खुद भी डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी. हालांकि कुछ दिनों बाद वह वापस एनसीपी में आ गए. अब फिर से पवार द्वय के तेवरों को 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है. अगले साल आम चुनाव और फिर उसके बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चाचा और भतीजे की जोड़ी की ये टिप्पणियां काफी अहम मानी जा रही हैं. इतना ही नहीं, इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि एनसीपी नेता भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का भी दामन थाम सकते हैं.