RAIPUR. बीजेपी शासनकाल में बनना शुरू हुआ स्काई वॉक का मामला लगातार विवादों से घिरा रहा है। कांग्रेस विपक्ष में थी तब भी भ्रष्टाचार का आरोप लगाती रही थी। सरकार में आने के बाद भी इस पर अनियमितताओं की बात कही गई। अब इस पर कई बिंदुओं में गड़बड़ियों की बात करते हुए राज्य शासन ने उन पर जांच के लिए मामले को ईओडब्ल्यू व एसीबी को सौंपने का निर्णय लिया है। गड़बड़ियों के प्रमुख बिंदुओं पर बात करें तो इसे बनाने से पहले जनहित का परीक्षण नहीं कराने व चुनाव अधिसूचना के बाद पीडब्ल्यूडी द्वारा पुनरीक्षण प्रस्ताव भेजने जैसे आरोप शामिल हैं।
पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा और एंटी करप्शन ब्यूरो मिलकर स्काई वॉक निर्माण में अनियमितता की जांच करेंगे। राज्य सरकार ने ये निर्णय लेने के साथ ही गड़बड़ियों की बिंदुवार सूची भी तैयार कर ली है जिस पर सिलसिलेवार जांच की जाएगी। इसके तहत आरोप लगाया गया है कि 77 करोड़ रुपये की इस परियोजना का जान बूझकर दो बार में प्राक्कलन तैयार किया गया। इसके पीछे का उद्देश्य यह था कि पीएफआईसी से मंजूरी की आवश्यकता न हो।
दूसरा ये कि पीएफआईसी के जरिए किसी भी परियोजना के जन हित के संबंध में परीक्षण किया जाता है। वहीं स्काई वॉक निर्माण के मामले में ऐसा नहीं किया गया है। इस पर भी सवाल उठता रहा है, जिस पर जांच की जाएगी। आरोप ये भी है कि विधानसभा निर्वाचन 2018 की अधिसूचना जारी हो चुकी थी। उसी दौरान लोक निर्माण विभाग की ओर से पुनरीक्षण प्रस्ताव तैयार किया गया और पांच दिसंबर 2018 को वित्त विभाग को भेजा गया। यह आदर्श आचार संहिता का स्पष्ट उल्लंघन था।एक बड़ा आरोप यह तय किया गया है कि इस कार्य को लोक निर्माण विभाग के पदाधिकारियों और ठेकेदार को अनुचित लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया था।
लोक निर्माण विभाग की ओर से स्काई वॉक निर्माण की पहली निविदा चार फरवरी 2017 को जारी की गई थी। वहीं टेंडर प्रस्तुत करने के लिए केवल 15 दिनों का समय दिया गया। चार फरवरी तक प्रकरण में वित्त विभाग से प्रशासकीय स्वीकृति भी हासिल नहीं की गई थी।वहीं 15 दिनों के लिए ही निविदा की समयावधि देने का कोई औचित्य था और न ही इसकी आवश्यकता थी। इसके साथ ही कोई सक्षम स्वीकृति भी हासिल नहीं की गई थी। इस तरह कुल मिलाकर गड़बड़ियों की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। अब देखना ये है कि इन बिंदुओं पर एसीबी व ईडब्ल्यूओ किस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं और कार्रवाई हो पाती है या नहीं। यह सब जांच पूरी होने और फैसला आने के बाद ही तय होगा।