भिलाई। नगर निगम भिलाई के चुनाव में इस बार निर्दलीय प्रत्याशियों का जादू नहीं चल पाया। भिलाई निगम के गठन के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब निगम चुनाव में निर्दलीय पार्षद दहाई का आंकड़ा पार नहीं कर पाए। 70 वार्डों में केवल 9 निर्दलीय पार्षदों ने जीत दर्ज की है। निर्दलीय प्रत्याशियों का जोर न चलने का लेकर अलग अलग आंकलन किया जा रहा है। वहीं इसे प्रदेश सरकार की सफलता से भी जोड़ा जा रहा है।
बता दें नगरीय निकाय चुनाव के तहत प्रदेश के चार नगर निगम सहित 15 निकायों में चुनाव संपन्न हुए हैं। इनमें सबसे बड़ा निगम भिलाई का रहा जहां 70 वार्डों में चुनाव संपन्न हुए। वहीं अन्य निकायों में सीटों की संख्या कम है। नगर निगम बिरगांव, नगर निगम भिलाई चरोदा व नगर निगम रिसाली में जहां 40 वार्ड में चुनाव हुए। वहीं नगर पालिका परिषदों में 20 वार्ड व नगर पंचायत के अधिकतम 15 वार्डों में चुनाव हुए। इनमें से कई निकायों में निर्दलीय पार्षद चुने ही नहीं गए। मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा। बिरगांव, भिलाई चरोदा व रिसाली निगम में भी निर्दलीय पार्षदों का आंकड़ा दहाई अंक छू ना सका।
20 साल में हर बार रहा है निर्दलियों का जोर
भिलाई नगर निगम की बात करें तो यहां हर चुनाव में निर्दलीय पार्षद बड़ी संख्या में चुनकर आते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। यह पहला मौका है जब भिलाई निगम में निर्दलीय पार्षद 10 से कम चुनक आए। नगर निगम भिलाई का गठन होने के बाद पहली बार सन 2000 में चुनाव हुए थे। 67 वार्डों के लिए हुए चुनाव में 32 वार्डों में कांग्रेस के प्रत्याशी जीते। वही 17 वार्डों में भाजपा के पार्षद विजयी हुए। 2000 में कुल 18 निर्दलीय पार्षदों ने जीत दर्ज की थी। इसी प्रकार सन 2000 में कांग्रेस के 21 पार्षद, भाजपा के 33 पार्षदों के साथ 13 निर्दलीय पार्षद जीते। 2010 में कांग्रेस के 22 भाजपा के 29 व 16 निर्दलीय पार्षद जीते। 2010 में जीते 16 निर्दलियों में दो छत्तीसगढ़ स्वाभीमान मंच के पार्षद रहे। इसी प्रकार 2015 में हुए चुनाव में कांग्रेस के 27 पार्षद व भाजपा के 29 पार्षद जीते। वही 14 निर्दलीय पार्षदों ने भी जीत दर्ज की। 2021 के आंकड़े देखें तो इस बार कांग्रेस ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 70 में से 37 वार्डों में कब्जा किया। भाजपा को 24 वार्ड में जीत मिली और निर्दलीय 9 वार्ड में सिमट गए। इन आंकड़ों से पता चलता है कि किस साल निर्दलीय प्रत्याशियों का जोर नहीं चल पाया है।
अप्रत्यक्ष प्रणाली का असर
जानकारों का मानना है कि निर्देशों के ज्यादा चुनकर ना आने का सीधा कारण छत्तीसगढ़ में लागू अप्रत्यक्ष प्रणाली है। इस बार महापौर का चुनाव पार्षदों के मत से होगा। यह एक बड़ा कारण है कि दोनों प्रमुख दलों ने अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया। इसका असर भी हुआ प्रदेश में सत्तासीन कांग्रेस के अत्याधिक पार्षद जीत कर आए। जिससे नगर निगम भिलाई में स्पष्ट बहुमत के साथ एक दल का महापौर वह उसकी एमआईसी होगी जिससे विकास कार्यों में भी तेजी आने की संभावना है।