नई दिल्ली। आज सोमवार से चातुर्मास (Chaturmas) खत्म हो गया है। जगत के पालनहार भगवान विष्णु शैय्या से उठ चुके हैं। देवउठनी (Devuthani) एकादशी (Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु चार माह के शयन काल (bedtime) के बाद जागते हैं और अपना कार्यभार संभालते हैं। माता तुलसी (Mata Tulsi) और भगवान सालिग्राम (Lord Saligram) के विवाह के साथ सनातन धर्म (eternal religion) के अनुसार अब से सभी मंगल काम होंगे।
देवउठनी एकादशी के दिन प्रायः घरों में लोग व्रत रखकर शुभ मुहूर्त (auspicious time) में गन्ने का मंडप (Sugarcane Pavilion) सजाकर माता तुलसी और सालिग्राम की विधि-विधान से पूजा कर शादी रचाते हैं। वहीं भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है। कहते हैं कि इस दिन से मांगलिक कार्यों की शुरूआत हो जाती है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष तिथि की एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। साल में पड़ने वाली 24 एकादशियों में से सबसे बड़ी एकदाशी देवउठनी एकादशी है।
आज भूलकर (forgetting) भी न करें ये काम
वेदों के अनुसार माना जाता है कि व्रत करें या न करें, लेकिन आज के दिन धर्म के विपरीत कोई भी काम नहीं करना चाहिए। मामस-मदीरा जैसी तामसिक चीजों का सेवन गलती से भी नहीं करना चाहिए। ऐसा करना अच्छी-भली जिंदगी में मुसीबतों को बुलावा देना है। देवउठनी एकादशी के दिन सुबह से उठकर स्नान-ध्यान करें। आज ब्रह्मचर्य का पालन करें। किसी से अपशब्द न कहें।
ऐसा करने से हो सकते हैं भगवान नाराज (god angry)
देवउठनी एकादशी को हिंदू धर्म में बहुत अहम माना गया है, लिहाजा आज व्रत रखें। यदि बीमारी या किसी अन्य कारण से व्रत न कर पाएं तो भी दिन में केवल एक समय ही सात्विक भोजन ही करें। देवउठनी एकादशी के दिन किसी भी पेड़-पौधे की टहनी या डाल न तोड़ें। यहां तक कि आज दातुन भी न करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु नाराज हो सकते हैं।
सूर्योदय के वक्त एकादशी तिथि इसलिए (Therefore) देवप्रोधिनी एकादशी आज
ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि एकादशी तिथि 14 नवंबर को सुबह तकरीबन 8.34 से शुरू हो रही है और अगले दिन सुबह 8.26 तक रहेगी। 15 नवंबर को सूर्योदय के वक्त एकादशी तिथि होने से इसी दिन देवप्रोधिनी और तुलसी विवाह पर्व मनाया जाना चाहिए। सूर्योदय व्यापिनी तिथि के इस सिद्धांत का जिक्र निर्णयसिंधु, वशिष्ठ स्मृति और अन्य ग्रंथों में किया गया है।
इसलिए भगवान चले जाते हैं चार महीने पाताल लोक (Hades)
भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी। उन्होंने विशाल रूप लेकर दो पग में पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरा पैर बलि ने अपने सिर पर रखने को कहा। पैर रखते ही राजा बलि पाताल में चले गए। भगवान ने खुश होकर बलि को पाताल का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा। बलि ने कहा आप मेरे महल में निवास करें। भगवान ने चार महीने तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं। फिर कार्तिक महीने की इस एकादशी पर अपने लोक लक्ष्मी जी के साथ रहते हैं।
ये है शुभ मुहूर्त-
विजय मुहूर्त- 01:53 पी एम से 02:36 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 05:17 पी एम से 05:41 पी एम
अमृत काल- 08:09 ए एम से 09:50 ए एम
निशिता मुहूर्त- 11:39 पी एम से 12:32 ए एम, नवम्बर 15
सर्वार्थ सिद्धि योग- 04:31 पी एम से 06:44 ए एम, नवम्बर 15
रवि योग- 06:43 ए एम से 04:31 पी एम
एकादशी व्रत की पूजा सामग्री
श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति
पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसीदल, चंदन,
मिष्ठान, मूली, शकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर, मूली, सीताफल, अमरुद और अन्य, ऋतु फल।
एकादशी की पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालीग्राम भगवान का विवाह रचाएं।
भगवान की आरती करें। भगवान को भोग लगाएं।
भोग में तुलसी आवश्यक
इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें। इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
(TNS)