रायपुर। मधुमेह बीमारी आज देश के लिए सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। सेहत के प्रति जागरूकता ही इससे बचने का जरिया है। बीमारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज हर दस में से एक व्यक्ति डायबिटीज की चपेट में है। जिस रफ्तार से बीमारी के मरीज आ रहे हैं, उससे आशंका है कि 21वीं सदी में डायबिटीज एक बड़ी समस्या होगी।
स्पर्श मल्टीस्पेशियल्टी हॉस्पिटल की डॉ. लिजो डेनियल के अनुसार आज विश्व मधुमेह दिवस है। मधुमेह या डायबिटीज को लेकर लोगों को सावधान रहने की जरूरत है। कई बार देखा गया है कि लापरवाही के चलते कई बार मरीज की जान पर बन आती है। डायबिटीज के रोगियों की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचता है। मधुमेह की शुरुआत तब होती है, जब पैन्क्रियाज में इंसुलिन बनना कम हो जाता है। या फिर पैन्क्रियाज द्वारा बनाए गए इंसुलिन का शरीर इस्तेमाल नहीं कर पाता। इसे इन्सुलिन रेसिस्टेन्स की स्थिति कहते हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया के लिए मधुमेह 21वीं सदी की सबसे भयावह स्वास्थ्य आपात स्थिति (हेल्थ इमरजेंसी) होगी। इससे निपटना दुनिया के लिए चुनौती होगी। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (आईडीएफ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व मधुमेह दिवस के मौके पर बताया है कि दुनियाभर में औसतन 40 लाख मधुमेह मरीजों की मौत हर साल होती है। हालांकि, वर्ष 2021 में महामारी के दौर में 67 लाख मधुमेह रोगियों की मौत हो चुकी है, जिसने अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
विश्व मधुमेह दिवस की थीम
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों में जागरुकता लाने 2021 से 2023 के लिए विश्व मधुमेह दिवस की थीम तैयार की है। थीम है एक्सेस टू डायबिटीज केयर- इफ नॉट नॉऊ वेन? यानी मधुमेह का उपचार आसान है, अगर अभी नहीं तो कब?
विश्व में भारत दूसरे नंबर पर
भारत में वर्ष 2025 तक मधुमेह रोगियों की संख्या 6.99 करोड़ थी, जबकि वर्ष 2030 तक आठ करोड़ के पार हो जाएगी। दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाला देश चीन में मधुमेह रोगियों की संख्या 10.96 करोड़ है। ब्रिटेन में हर बीस में से एक वयस्क मधुमेह रोगी है।
मधुमेह के प्रकार
टाइप-1 डायबिटीज : ये बीमारी आमतौर पर बच्चों और किशोरों में अधिक देखने को मिलती है। मरीज में इंसुलिन बहुत कम बनता है या नहीं बनता है। ऐसे मरीजों को रक्त में ग्लूकोज का स्तर संतुलित रखने के लिए नियमित इंसुलिन की खुराक देनी पड़ती है।
टाइप-2 डायबिटीज : कुल मरीजों में 90 फीसदी इसी से ग्रसित। ऐसे मरीजों में शरीर इंसुलिन का सही इस्तेमाल नहीं कर पाता है। खाने वाली दवाओं के साथ इंसुलिन की मदद से इसे नियंत्रित रखा जा सकता है। व्यायाम बहुत जरूरी है।
जेस्टेशनल डायबिटीज : गर्भावस्था में रक्त में ग्लूकोज की मात्रा अधिक होने की स्थिति को जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं। इससे मां-बच्चा दोनों प्रभावित होते हैं। आमतौर पर प्रसव बाद तकलीफ ठीक हो जाती हैं। बच्चे को टाइप-2 डायबिटीज होने की आशंका रहती है।
डायबिटीज के लक्षण
अधिक यूरिन होना, खासकर रात में। बार-बार प्यास लगना, वजन कम होना, बहुत अधिक भूख लगना, धुंधला दिखना, हाथ या पैरों में कंपन होना, बहुत अधिक थकान महसूस करना, त्वचा रुखी रहना, घाव का न सूखना, बार-बार संक्रमण होना।
(TNS)