BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई। याचिका में शंकालु पति ने अपनी पत्नी पर बिना किसी साक्ष्य के चरित्र शंका की। साथ ही उसने अपने चार माह के मासूम बच्चे से उसका खून होने का साक्ष्य मांगा। हाईकोर्ट में बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की अनुमति मांगी। मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक तिवारी के सिंगल बेंच में हुई। हाईकोर्ट से पूर्व परिवार न्यायालय ने इस मामले को खारिज कर दिया था। अब हाईकोर्ट ने भी मासूम बच्चे के डीएनए टेस्ट कराने से मना किया साथ ही बच्चे के अच्छे पालन-पोषण की हिदायत अपिल कर्ता को दी है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के निर्णय की सराहना की।
बता दें, मामला बालोद जिले का है। युवक-युवती की शादी हुई और एक बच्चा भी हुआ। बच्चे की उम्र 4 माह की है। दोनों की शादी को हुए दो साल ही हुए हैं। इस बीच दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद शुरू हुआ। विवाद ने मनमुटज्ञव का रूप ले लिया। घर की चहारदीवारी के बीच का विवाद कोर्ट तक पहुंच गया।
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आपसी संबंधों के बीच आशंका का बीज खुद पति ने बोया। फैमिली कोर्ट में मामला दायर करते हुए चार महीने के मासूम से रिश्ते पर सवाल उठाते हुए डीएनए टेस्ट की मांग कर डाली। मां और पिता के गोद में खेलने के उम्र में मासूम को घर के आंगन से निकालकर कोर्ट के दरवाजे पर ला खड़ा किया।
मामले की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज कर दिया। फैमिली कोर्ट ने पिता को यह भी हिदायत दी कि बच्चे का लालन-पालन एक पिता की तरह करें। मासूम जिंदगी के साथ कोई दुराभाव ना रखें।
फैमिली कोर्ट ने पहले ही दी थी समझाइस
फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता पिता को घर परिवार के बीच सामंजस्य बनाए रखने और चार महीने के बच्चे का लालन-पालन अच्छे ढंग से करने की समझाइस दी थी। फैमिली कोर्ट की समझाइस का पिता पर कोई असर नहीं पड़ा। अपने अधिवक्ता के माध्यम से फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपनी मांगों को दोहराते हुए चार महीने के मासूम का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की।
खारिज किया मामला
जस्टिस दीपक तिवारी ने मामले की सुनवाई करते हुए मामले को खारिज किया। साथ ही कहा कि प्रथम दृष्टया ठोस प्रकरण नहीं होने पर हिन्दू रीति रिवाज से हुए विवाह के दौरान जन्म लिए बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जाना चाहिए और ना ही दिया जा सकता है। डीएनए टेस्ट का आदेश तभी दिया जाना चाहिए जब साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत पर्याप्त प्रथम दृष्टया सबूत हों।