RAIPUR. छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव से पहले एक बार फिर पिछली सरकार के फैसले में बदलाव ने सियासत गरमा दी है। राज्य सरकार ने नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्षों के अधिकारों में कटौती की है। इसे लेकर कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है।
सवाल उठता है कि आखिर क्यों नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्षों के अधिकारों में की कटौती गई। दरअसल, छत्तीसगढ़ के अधिकतर नगर पंचायत और नगर पालिकाओं में इस समय कांग्रेस के अध्यक्ष और सभापति काबिज हैं। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उन्हें वित्तीय अधिकार भी दिए गए थे। नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष चेक में साइन भी करते थे। साथ ही उन्हें अहम दस्तावेजों के अवलोकन का भी अधिकार था।
वहीं, राज्य की बीजेपी सरकार ने इस अधिकार को वापस ले लिया है। अब सीएमओ ही नगर पालिकाओं और पंचायतों में चेक काटने के लिए सक्षम होंगे। साथ ही फाइलें भी अध्यक्षों के पास से मूव नहीं होंगी। यह अलग बात है कि उन्हें सूचना दे दी जाएगी।
इस पर नगरीय प्रशासन मंत्री अरुण साव का कहना है कि निकायों में कामकाज को बेहतर ढंग से संचालित करने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है। इससे जनप्रतिनिधियों को विकास कार्यों में ध्यान देने के लिए पर्याप्त समय मिल सकेगा। वहीं पीसीसी चीफ दीपक बैज ने अधिकारों में कटौती के फैसले को दुर्भावनापूर्ण बताते हुए वापस लेने की मांग की है।
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आपको बता दें कि प्रदेश में अगले कुछ महीनों में नगरीय निकाय चुनाव होना है। ऐसे में अध्यक्षों के अधिकार में कटौती कर सरकार ने बड़ा दांव चला है। ऐसे में इस फैसले से जहां सियासी पारा गर्म हो गया है, वहीं इसका असर निकायों के कामकाज पर भी देखने मिल सकता है।