ATUL MALAVIYA. आज जब भारतीय समाज में, परिवारों में, विघटन और बिखराव की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं, तब आवश्यकता है हमारी महान संस्कृति और विरासत की ओर पीछे मुड़कर देखने की।
ऐसी कौन सी बात है देवी सीता में जो हजारों वर्षों से भारतीय समाज ने उन्हें नारी का सर्वांगीण उदाहरण स्वीकार कर रखा है? अधिकांश लोग भ्रमित होकर उन्हें कमजोर, पति की आज्ञाकारिणी, सास ससुर की सेवा करने वाली आदर्श महिला तक ही मानकर संतुष्ट हो जाते हैं। इससे इतर सीता के प्रभावी एवं शक्तिशाली स्वरूप की चर्चा कम ही होती है।
वाल्मीकि रामायण से लेकर तुलसीदास और वर्तमान काल में निराला ने इस संबंध में लिखकर भारतीय जनमानस को खूब प्रभावित किया। आइये आज इनकी उन खूबियों पर नज़र डालें जिन्हें देखकर संभवतः आज की मॉडर्न कही जाने वाली महिलाओं को भी दाँतों तले उँगली दबानी पड़े:
1. स्वयं के योग्य वर चुनने का अधिकार अर्थात स्वयंवर।
2. आज भी जब अनेक रूढ़िवादी भारतीय परिवारों में स्त्रियाँ अपने पति के साथ बाज़ार या सिनेमाहॉल जाने के लिए अनुमति नहीं ले पातीं, सास ससुर, यहाँ तक कि पति की इच्छा के विरुद्ध भी दृढ़तापूर्वक 14 वर्ष के लिए वनगमन का स्वविवेक से निर्णय लेना।
3. अनिंद्य सुंदरी – सीताजी के समान सुंदरी संपूर्ण त्रेता युग में न हुई।
” न एव देवी न गंधर्वी न अप्सरा न पन्नगी; तुल्या सीमंति तस्या मानुषी तु कुतो भवेत”
तात्पर्य : सीता के समान सुंदरी न कोई देवी, न गंधर्वी और न ही अप्सरा ही हुई, फिर उनकी तुलना किसी मानुषी से तो की ही नहीं जा सकती।
4. वाल्मीकि रामायण में तो यहाँ तक उद्धृत है कि रावण इत्यादि असुरों से पृथ्वी को मुक्त कराने में भगवान राम तो निमित्त मात्र थे, असली शक्ति भगवती सीता ही थीं।
5. दुरूह और भयंकर वन में भी पति और देवर के साथ निडरता से रहते हुए गृह प्रबंधन संभालना।
6. जब तक पति राम का संघर्षपूर्ण समय न निकल जाये, बच्चे पैदा नहीं करने का संकल्प।
7. प्रचुर धन, अपार शक्ति और ऐश्वर्य के स्वामी लंकाधिपति रावण द्वारा असंख्य प्रलोभन देने के पश्चात भी संयम से न तो डिगना, न भय खाना और न ही विलासिता की ओर आकृष्ट होना। धन्य है ऐसी साहसी नारी जो चंद्रहास खड्ग देखते हुए भी उससे डरना तो दूर, ऐसे में भी महाबली रावण को ललकार देती हैं –
बहु विधि खल सीतहि समुझावा साम दान भय भेद दिखावा
कह रावणि सुनु सुमुख सयानी मंदोदरी आदि सब रानी
तब अनुचरीं करऊँ पन मोरा एक बार बिलोकि मम ओरा
तृण धरि ओट करत वैदेही सुमिरि अवधपति परम सनेही
सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा कबहुँ कि नलिनी करहिं बिकासा
अस मन समझ कहत जानकी खल सुध नहीं रघुबीर बान की
मैं लिखते लिखते ही उस दृश्य की परिकल्पना करके रोमांचित हो रहा हूँ, मेरी आँखों में उस महिला के साहस की अनुभूति कर आँसू आ रहे हैं जिसके सामने दुनिया का सबसे ताकतवर आदमी खड़ा होकर साम दाम दंड भेद अपना रहा हो, फिर भी एक अकेली, वह भी उसी की कैद में रह रही राक्षस, राक्षसनियों से घिरी महिला रावण को ही खत्म करने की चेतावनी दे रही हो।
8. अब आते हैं उस प्रसंग पर जिसमें सीता अपने पति राम से अलग होकर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में न सिर्फ चली जाती हैं बल्कि अपने दो नन्हें बालकों लव और कुश को जन्म देती हैं, उनका सिंगल मदर के रूप में लालन पालन करती हैं, उनकी शिक्षा दीक्षा उनका संवर्धन इस प्रकार करती हैं जिससे वे भविष्य के चक्रवर्ती सम्राट बन सकें। इसे तुलना कर सोचिए आज की सिंगल माताओं के बारे में जो सर्वसुविधायुक्त होते हुए भी एक बच्चे की परवरिश को कठिन मानती हैं।
ऐसी कठिनतम परिस्थितियों में भी माता सीता ने विवेकपूर्ण तरीके से बच्चों को पाला, फिर भी उनके हृदयों में पिता राम के प्रति कटुता नहीं आने दी। सीता जैसी साहसी महिला के चरणों में बारंबार नमन करते हुए सभी से प्रार्थना है कि सीता के साहसी और धैर्यवान व्यक्तित्व को स्मरण रखें, न कि उनकी छवि को एक कमजोर, पति के पीछे पीछे चलने वाली महिला के रूप में देखें।