BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने धर्मांतरण रोकने वाले होर्डिंग्स और गांवों में पादरियों की एंट्री पर रोक संबंधी याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने साफ कहा कि राज्य सरकार का सर्कुलर असंवैधानिक नहीं है, क्योंकि इसका उद्देश्य किसी धर्म के खिलाफ नफरत फैलाना नहीं, बल्कि जनजातीय संस्कृति और परंपराओं की रक्षा करना है।

बता दें, कांकेर जिले के कुंडला, परवी, बांसला, घोटा, घोटिया, मुसरुपुट्टा और सुलंगी जैसे गांवों में ग्राम सभाओं ने पेसा एक्ट का हवाला देकर बोर्ड लगाए। इनमें लिखा है कि—गांव पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आता है, और ग्राम सभा संस्कृति की रक्षा के लिए पादरियों व धर्मांतरीतों को धार्मिक कार्य या धर्मांतरण के लिए प्रवेश की अनुमति नहीं देती।

इन बोर्डों पर आपत्ति जताते हुए दिवल टांडी (कांकेर) और नरेंद्र भवानी (जगदलपुर) ने हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की थीं। उनका कहना था कि ऐसे बोर्ड धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) का उल्लंघन करते हैं।
सरकार ने अदालत को बताया कि जारी सर्कुलर में कहीं भी धर्म विशेष के खिलाफ बयानबाज़ी या पोस्टर लगाने का निर्देश नहीं दिया गया है। इसका मकसद केवल अनुसूचित जनजातियों की पारंपरिक संस्कृति की सुरक्षा और सामाजिक समरसता बनाए रखना है।

राज्य सरकार ने यह भी तर्क दिया कि बस्तर संभाग में पिछले कुछ समय से स्थानीय आदिवासियों और धर्मांतरित ईसाई समुदायों के बीच तनाव बढ़ा है। कई स्थानों पर इस विवाद से जुड़ी एफआईआर भी दर्ज हुईं। ऐसे हालात में सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए यह सर्कुलर जारी किया गया था।

हाईकोर्ट ने सरकार के इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि संविधान हर नागरिक को अपने धर्म का पालन और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता किसी समुदाय की परंपरा, शांति और सामाजिक संतुलन को भंग करने की अनुमति नहीं देती।न्यायालय ने कहा धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार पूर्ण नहीं है — यह उसी सीमा तक मान्य है, जहां तक उससे समाज की एकता और शांति प्रभावित न हो।





































