BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में रेलवे कर्मी ने अनिवार्य सेवानिवृत्त के खिलाफ याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस बीडी गुरु के बेंच में हुई। कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि विभागिय जांच स्थापित कानूनी स्थिति है। इस पर हस्तक्षेप करने न्यायालय का सीमित अधिकार है।
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बता दें, बिलासपुर निवासी याचिकाकर्ता दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के बिलासपुर रेल मंडल में मेल एक्सप्रेस गार्ड के पद में पदस्थ था। 22 अगस्त 2017 को उसकी ड्यूटी गीतांजलि एक्सप्रेस में थी। नागपुर स्टेशन में न्यूज पेपर बंडल उतारने के लिए एसएलआर का सील नहीं खोला गया था। इसके साथ शिकायत पर रेलवे के मेडिकल ऑफिसर ने एल्कोहल जांच के लिए रक्त नमूना की मांग की। इस पर कर्मचारी ने रक्त नमूना देने से इंकार कर दिया।
इस पर रेल प्रशासन ने उन्हें 11 अक्टूबर 2017 को रेल सेवा से अनुशासन अपील रूल 1968 के तहत चार्जशीट दिया और विभागीय जांच शुरू कर दी। दो साल की जांच के बाद जुलाई 2019 में जांच रिपोर्ट पेश की गई। इसके बाद याचिकाकर्ता को पूरा पेंशन एवं अन्य लाभ देते हुए अनिवार्य सेवानिवृत्त किया गया। इसके खिलाफ उसने उच्च अधिकारियों के समक्ष अपील पेश की लेकिन वहां भी अपील खारिज कर दी गई। इस पर उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
इस पर कोर्ट ने उसके पक्ष को सुनने के बाद यह निर्णय लिया और याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन किया गया। प्रशासन ने याचिकाकर्ता को बचाव का पूरा अवसर प्रदान किया है। इसके बाद कार्रवाई की गई। इसमें कोई प्रक्रियात्मक त्रुटि नहीं है। विभागीय जांच एक स्थापित कानूनी स्थिति है। विभागीय जांच मामले में न्यायिक समीक्षा बहुत सीमित है। विभागीय आचरण में किसी भी प्रक्रियात्मक अवैधता का अभाव जांच में यह माना जाना चाहिए कि आरोप सिद्ध हो चुका है और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। यह स्थापित कानून न्यायालयों का क्षेत्राधिकार सीमित है। कोर्ट ने कार्रवाई में किसी भी प्रकार के त्रुटि नहीं होने के आधार पर कर्मचारी की याचिका को खारिज किया है।