BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में प्रिंसिपल के पद पर पदोन्नति नियम को चुनौती देने दायर याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टि अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच में हुई। हाईकोर्ट ने अपने इस महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि प्रमोशन का अवसर संवैधानिक या कानूनी अधिकार नहीं हैं। बेंच ने कहा कि सरकार ने पदोन्नति के लिए नियम तय करने में शिक्षा विभाग में पहले से कार्यरत लेक्चरर के हितों को ध्यान में रखा है और 65 प्रतिशत पदों में से 70 प्रतिशत पद ई संवर्ग के लेक्चरर के लिए आरक्षित किए गए है।
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बता दें, शिक्षा विभाग में कार्यरत राजेश कुमार शर्मा, सुनील कौशिक, जितेन्द्र शुक्ला, संजय तंबोली सहित कई ने हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की थी। इसमें छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा (शैक्षणिक एवं प्रशासनिक संवर्ग) भर्ती एवं पदोन्नति के नियम 2019 की अनुसूची 2 की प्रविष्टि 18 को अवैध घोषित करने की मांग की थी।
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राज्य सरकार की ओर से उप महाधिवक्ता ने कहा कि पंचायत विभाग और स्थानीय निकायों के शिक्षकों का स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है। सभी विभागों के कर्मचारियों के स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन के बाद उनके हितों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग संवर्ग बनाए गए हे। सभी संवर्गों को पदोन्नति के अवसर उपलब्ध कराए गए है।
बताया मौलिक अधिकार उल्लंघन
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में बताया कि नियम 2019 की अनुसूची-2 के अनुसार लेक्चरर का प्रमोशन वाला पद प्राचार्य है। कुल स्वीकृत पदों में से 10 प्रतिशत सीधी भर्ती और 90 प्रतिशत पद पदोन्नति से भरे जाने थे। इसमें से 65 प्रतिशत ई-संवर्ग और टी-संवर्ग के व्याख्याता और 30 प्रतिशत व्याख्याता ई एलबी एवं टी एलबी संवर्ग से पदोन्नति के माध्यम से भरे जाएंगे। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे 20-30 साल से काम कर रहे हैं। 30 प्रतिशत पद एलबी संवर्ग को दिए गए हैं इसलिए याचिकाकर्ताओं की पदोन्नति का अवसर प्रभावित होगा। ज्यादातर शिक्षक रिटायर होने वाले हैं जिसके कारण उन्हें प्राचार्य के पद पर प्रमोशन नहीं मिल पाएगा। राज्य सरकार के इस निर्णय की वजह से वह जूनियर हो जाएंगे। यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।