BENGALURU. सूर्य मिशन के बाद अब भारत का अगला चंद्रमा पर पहुंचने का लक्ष्य है। इसकी जानकारी खुद इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के इंस्टाग्राम पेज के माध्यम से दी। साथ ही सोमनाथ ने यह भी कहा कि वह मई में फिर संवाद करेंगे। यह आयोजन युवा पीढ़ी से जुड़ने का प्रयास है। इस दौरान सोमनाथ ने कहा कि प्राइवेट कंपनियां अंतरिक्ष को और अधिक सुलभ बनाएंगी और इस क्षेत्र में अनुसंधान को गति देने में मदद करेंगी।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख सोमनाथ ने शनिवार को कहा, भारत में पहले से ही दो कंपनियां-स्काईरूट एयरोस्पेस और अग्निकुल कासमास अंतरिक्ष क्षेत्र में काम कर रही हैं। हम भारत को इस तरह आगे बढ़ते हुए देखकर उत्साहित हैं। ये कंपनियां पहले ही रॉकेटों का परीक्षण कर चुकी हैं।
चंद्रयान -4 से संबंधित प्रश्न का उत्तर देते हुए सोमनाथ ने कहा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की है कि भारत का 2040 में चंद्रमा पर उतरने का लक्ष्य है। चंद्रयान-4 इस उद्देश्य की दिशा में पहला कदम होगा। मिशन का लक्ष्य चंद्रमा पर यान भेजना, नमूने एकत्र करना और उन्हें पृथ्वी पर लाना है।
बता दें कि चंद्रयान-2 की तरह ही चंद्रयान-3 में भी लैंडर और रोवर को चांद पर भेजा गया था। हालांकि, इसमें ऑर्बिटर नहीं था। इसरो ने 14 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 लॉन्च किया था। 23 अगस्त की शाम को चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की थी। इसके साथ ही चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर भेजने वाला भारत पहला देश बन गया था।
चंद्रयान-3 मिशन का प्राथमिक उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के पास एक सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन करना और ‘विक्रम’ लैंडर व ‘प्रज्ञान’ रोवर पर लगे उपकरणों के जरिए चांद की सतह का अध्ययन करना शामिल था।
17 अगस्त 2023 को जो प्रोपल्शन मॉड्यूल विक्रम लैंडर से अलग हुआ था. पहले उसकी लाइफ 3 से 6 महीने बताई जा रही थी, लेकिन इसरो के मुताबिक, अभी वो कई सालों तक काम कर सकता है। इसरो ने साल 2008 में अपना पहला मून मिशन चंद्रयान-1 लॉन्च किया था. इसमें सिर्फ ऑर्बिटर था। इसने 312 दिन तक चांद का चक्कर लगाया था। चंद्रयान-1 दुनिया का पहला मून मिशन था, जिसने चांद में पानी की मौजूदगी के सबूत दिए थे।
इसके बाद 2019 में चंद्रयान-2 लॉन्च किया गया। इसमें ऑर्बिटर के साथ लैंडर और रोवर भी भेजे गए। हालांकि, ये मिशन न तो पूरी तरह सफल हुआ था न और न ही फेल. चांद की सतह पर लैंड करने से पहले ही विक्रम लैंडर टकरा गया था और इसकी क्रैश लैंडिंग हुई थी। हालांकि, ऑर्बिटर अपना काम कर रहा था।