RAIPUR. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज बस्तर जिले के जगदलपुर स्थित सिरहासार भवन में आयोजित ‘बस्तर गोंचा महापर्व’ और भगवान श्री जगन्नाथ की आरती एवं 56 भोग कार्यक्रम में वर्चुअल रूप से शामिल हुए। इस दौरान मुख्यमंत्री बघेल ने भगवान जगन्नाथ से प्रदेशवासियों के सुख-समृद्धि और खुशहाल जीवन की कामना की और सभी लोगों को गोंचा महापर्व की शुभकामनाएं दीं।
गोंचा पर्व के मौके पर मुख्यमंत्री बघेल ने आम सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि यह पर्व छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित करने वाला महापर्व है। बस्तर में मनाये जाने वाला दशहरा और गोंचा पर्व बहुत ही अनूठा है, जो विभिन्न संस्कृतियों के संगम का अनुपम उदाहरण है। इन पर्वों से ही बस्तर और छत्तीसगढ़ की पहचान है। उन्होंने बस्तर के समृद्ध इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि यहां की संस्कृति की छटा बड़ी ही निराली है। बस्तर और बस्तर की संस्कृति को तभी अच्छी तरह समझा जा सकता है, जब बस्तर के साथ-साथ इसे बस्तर आकर व्यक्तिगत रूप से जिया जाए। गोंचा पर्व को उन्होंने बस्तर के हजारों रंगों में से एक रंग बताया। साथ ही उनका मानना है कि यह महापर्व आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ ही साथ सांस्कृतिक विकास को जानने-समझने के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
616 वर्षों से चली आ रही ये परंपरा
गौरतलब है कि 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज द्वारा अनवरत् 616 वर्षों से यह महापर्व आयोजित किया जा रहा है। ‘बस्तर गोंचा महापर्व’ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 25 जून को बस्तर जिले के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर के सिरहासार भवन में आयोजित बस्तर गोंचा महापर्व में शामिल हुए। ओडिशा का गुड़िंचा पर्व बस्तर में आकर गोंचा पर्व हो गया। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि हमारे देव, हमारी देवगुड़ियां, हमारी मातागुड़ियां केवल आध्यात्मिक महत्व के स्थान नहीं है। ये स्थान हमारे मूल्यों से जुड़े हुए हैं। इसीलिए हमारी सरकार इन स्थानों को सहेजने और संवारने के लिए अपना पूरा प्रयास कर रही है। इस दौरान उन्होंने राम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना के बारे में बताते हुए कहा कि हम उत्तर से लेकर दक्षिण तक भगवान राम के वनवास से जुड़े स्थलों को चिन्हित करके उन्हें पर्यटन तीर्थों के रूप में विकसित भी कर रहे हैं। जिसके लिए विकासकार्य शुरू हो चूका है।
स्थानीय तीज-त्योहारों को जिंदा रखना जरूरी- सीएम
इसके साथ ही गावों में मनाएं जाने वाले स्थानीय तीज-त्यौहार अलग-अलग अंदाज में मनाए जाते हैं। आदिवासी परब सम्मान निधि योजना और छत्तीसगढ़ी पर्व सम्मान निधि योजना के बारे में जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि स्थानीय तीज-त्योहारों की परम्पराओं को जिंदा रखना बेहद आवश्यक है। इन योजनाओं की शुरुआत इसी उद्देश्य से की गई है। इसके अंतर्गत ग्राम पंचायतों को प्रतिवर्ष 10 हजार रुपए दिए जाने का भी प्रावधान किया गया है। हमारे पुरखों ने तीज-त्यौहारों के माध्यम से हम तक अपनी शिक्षा और संस्कारों को पहुंचाया है। इसलिए तीजा-पोला, हरेली, छेरछेरा, कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी दिवस और छठ पर्व पर सार्वजनिक अवकाश शुरू किए गए। इससे आने वाली नयी पीढ़ी भी अपनी संस्कृति से अच्छी तरह परिचित हो पाएगी तथा इसके महत्व को समझ पाएगी. सीएम बघेल ने कहा कि हमारी संस्कृति और परंपराओं से पूरी दुनिया को अवगत कराने के लिए राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव की शुरुआत भी की गई है। साथ ही अपनी खेल संस्कृति को बचाए रखने के लिए हमने छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के आयोजन की शुरुआत की। हाल ही में हमने रायगढ़ में राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन भी किया जिसमे देश-विदेश की रामलीला मंडलियों ने हिस्सा लिया।
ये भी हुए शामिल
महापर्व अवसर के दौरान स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव, बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल, संसदीय सचिव रेखचंद जैन, हस्तशिल्प विकास बोर्ड के अध्यक्ष चंदन कश्यप, चित्रकोट विधायक राजमन बेंजाम, क्रेडा अध्यक्ष मिथिलेश स्वर्णकार, मछुआ कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष एमआर निषाद, इंद्रावती बेसिन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष राजीव शर्मा, महापौर श्रीमती सफीरा साहू, नगर निगम सभापति कविता साहू सहित अनेक जनप्रतिनिधिगण, 360 आरण्यक ब्राह्मण समाज के पदाधिकारी एवं सदस्य, गोंचा आयोजन समिति के सदस्य सहित अन्य महत्वपूर्ण नागरिक भी मौजूद रहे।
सामाजिक भवन निर्माण के लिए जमीन का पट्टा
महापर्व में वर्चुअल उपस्थित होकर सीएम बघेल ने 04 समाज के प्रतिनिधियों को भेंट-मुलाकात के दौरान की गई घोषणा के अनुरूप सामाजिक भवन निर्माण के लिए भूमि आबंटन का पट्टा वितरण किया। इसमें चडार बुनकर समाज, मां छिंदवाली महाकाली सेवा समिति, भुंजवा वैश्य समाज और क्षत्रिय महासभा समाज को भूमि का पट्टा प्रदान किया गया। पट्टा के साथ सामाजिक भवन निर्माण के लिए 50 लाख रुपए मिलने पर आरण्यक ब्राह्मण समाज ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आभार व्यक्त कर धन्यवाद किया।