BILASPUR. प्रदेश में आरक्षण को लेकर जारी विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहा है. पिछले दिनों जहां राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राजभवन को नोटिस जारी किया था. वहीं अब राजभवन से कोर्ट में याचिका दायर की गई है और कहा गया है कि किसी भी मामले में कोर्ट द्वारा राज्यपाल और राष्ट्रपति को नोटिस जारी कर ऐसा पक्षकार नहीं बनाया जा सकता. इसे असंवैधानिक बताते हुए संविधान के अनुच्छेद को भी इंगित किया गया है. इसकी सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने इसे फैसले के लिए सुरक्षित कर लिया है.
आपको बता दें कि प्रदेश में विभिन्न वर्गों के आरक्षण में बढ़ोतरी कर कुल आरक्षण को 76 प्रतिशत करने का विधेयक राज्य सरकार ने तैयार किया था. विधानसभा का विशेष सत्र आयोजित कर इसे पास भी करा लिया गया. लेकिन, राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए इसे राजभवन भेजे जाने के बाद मामला गर्म हो गया है. दरअसल, राज्यपाल अनुसुईया उईके ने इसमें अब तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं और राज्य सरकार के समक्ष ही बिंदुवार प्रश्न पूछ दिए हैं. राज्य शासन द्वारा जवाब पेश करने के बाद भी मामला अटका हुआ है.
ऐसे में बीते दिनों राज्य सरकार और हाईकोर्ट के वकील हिमांक सलुजा ने अलग-अलग दो याचिकाएं दायर की हैं. इस पर दोनों ही मामलों को एक साथ सुनवाई के लिए रखा गया. वहीं याचिकाओं में उठाए गए सवालों के संदर्भ में जवाब पेश करने के लिए हाईकोर्ट की ओर से राजवभवन के सचिवालय को नोटिस जारी किया गया है.
अब मामला इसलिए गर्म हो गया है, क्योंकि राजभवन की ओर से ही हाईकोर्ट द्वारा नोटिस भेजे जाने पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी गई है. इसमें कहा है कि आर्टिकल 361 के तहत किसी भी प्रकरण में राष्ट्रपति या राज्यपाल को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता है। इस मामले में अंतरिम राहत पर बहस के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
तर्क में ये कहा गया
शासन की याचिका पर राजभवन को नोटिस जारी होने के बाद राज्यपाल सचिवालय की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें याचिका पर राजभवन को पक्षकार बनाने और हाईकोर्ट की नोटिस देने को चुनौती दी गई है। राज्यपाल सचिवालय की ओर से पूर्व असिस्टेंट सालिसिटर जनरल और सीबीआई व एनआईए के विशेष लोक अभियोजक बी. गोपा कुमार ने तर्क पेश किया और कहा कि संविधान के अनुच्छेद 361 में राष्ट्रपति व राज्यपाल को अपने कार्यालय की शक्तियों और काम को लेकर विशेषाधिकार है. जिसके तहत दोनों ही किसी भी न्यायालय में जवाबदेह नहीं हैं। लिहाजा हाईकोर्ट को राजभवन को नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है। आरक्षण विधेयक बिल राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया है। लेकिन, इसमें समय सीमा तय नहीं है कि कितने दिनों में बिल पर निर्णय लेना है। याचिका के साथ ही अंतरिम राहत की मांग कर ये भी कहा गया है कि प्रथम दृष्टया याचिका पर राजभवन को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता।