BAIKUNTHPUR. कोरिया जिले में गुरु घासीदास नेशनल पार्क से लगे इलाकों में तीन इंसानी जानें लेने वाला आदमखोर तेंदुआ आखिर पकड़ लिया गया है। हालांकि यह इलाका मनेंद्रगढ़ वन मंडल के जनकपुर वन परिक्षेत्र में आता है। अचानकमार टाइगर रिजर्व के खोजी कुत्ते नेरो और वहां से आई टीमों ने इसमें अहम भूमिका निभाई। नेरो ने तेंदुए के पगमार्क को सूंघकर उसके ठिकाने तक पहुंचाया।
एटीआर की टीम ट्रैंक्यूलाइजर गन लेकर हाथी पर सवार होकर उसके साथ गए। तेंदुए को सामने में न पाकर पिंजरा लगाकर मुर्गा बांधा गया। आखिरकार मंगलवार की देर रात तक तेंदुआ को पिंजरे में कैद कर लिया गया। इसके साथ ही वन विभाग, नेशनल पार्क प्रबंधन और पूरे इलाके के ग्रामीणों ने राहत की सांस ली है। फिलहाल तेंदुए को रायपुर ले जाया जा रहा है।
तेंदुए को पकड़ने के लिए टीम ने तीन जाल नौढिया और सिंगरौली में भी लगाया था। वहीं हर पिजरे में मुर्गा रखा गया था। आपको बता दें कि आदमखोर तेंदुआ ने सबसे पहले 11 दिसंबर 2022 को पहली बार इंसान की जान ली थी। तब फुलझरिया गौधौरा में इसने एक ग्रामीण की जान ले ली थी। फिर बीते तीन जनवरी को पुरनिहा पारा सिंगरौली में और इसके बाद हाल ही में 15 जनवरी को नौढिया में रमदमन नाम की महिला को मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद ग्रामीणों ने धरना प्रदर्शन करते हुए तेंदुए को पकड़ने की मांग की थी।
तब वन विभाग ने कानन पेंडारी चिड़ियाघर बिलासपुर, अचानकमार टाइगर रिजर्व और अंबिकापुर के सहयोग से तेंदुए को पकड़ने की योजना बनाई। इसी के तहत एक प्रशिक्षित हाथी को लाया गया। एक्सपर्ट टीम ने हाथी के माध्यम से तेंदुए की तलाश शुरू की। इसमें देर रात उन्हें सफलता मिली। फिलहाल तेंदुए को रायपुर ले जाया जा रहा है। हालांकि अभी भी उसके भविष्य को लेकर अंतिम फैसला नहीं किया गया है।
ये हो सकते हैं विकल्प
वन्य जीव विशेषज्ञों का इस मामले में मानना है कि तेंदुए के भविष्य को लेकर दो तरह के निर्णय लिए जा सकते हैं। एक तो यह कि इसे प्रदेश के किसी भी चिड़ियाघर में रखा जा सकता है। दूसरा ये कि उसे इंसानी संपर्क से दूर रखते हुए उसके स्वभाव में परिवर्तन लाकर वापस घने जंगल में छोड़ा जा सकता है। लेकिन, जिस तरीके से उसे इंसानी खून का स्वाद मिल चुका है उसे देखते हुए इसमें बदलाव आना मुश्किल प्रतीत हो रहा है। इस लिहाज से उसे वापस जंगल में छोड़े जाने की संभावना कम है।